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परेशानी. योजना के कार्यान्वयन में गुणवत्ता पर भी पड़ रहा असर

भागलपुर : सड़क और पुल-पुलिया के निर्माण लंबे समय से टेंडर के खेल में उलझा है. इससे योजनाएं फंस रही है और महंगी हो जा रही हैं. दरअसल टेंडर निकालना, फिर इसे रद्द करना और फिर से निकालने का सिलिसला लंबे दिनों तक चलता है. इससे एस्टिमेट रिवाइज कराना पड़ता है. अगर एस्टिमेट रिवाइज नहीं […]

भागलपुर : सड़क और पुल-पुलिया के निर्माण लंबे समय से टेंडर के खेल में उलझा है. इससे योजनाएं फंस रही है और महंगी हो जा रही हैं. दरअसल टेंडर निकालना, फिर इसे रद्द करना और फिर से निकालने का सिलिसला लंबे दिनों तक चलता है. इससे एस्टिमेट रिवाइज कराना पड़ता है.

अगर एस्टिमेट रिवाइज नहीं होता है, तो कांट्रैक्टर को पुरानी दर पर योजनाओं को पूरा करने की बाध्यता के कारण मनमानी करते हैं. इसका असर गुणवत्ता पर पड़ता है या फिर टेंडर फाइनल होने के बाद कांट्रैक्टर काम छोड़ देते हैं और विभाग को फिर से टेंडर की प्रक्रिया अपनानी पड़ती है.

घंटाघर से तातारपुर जानेवाली सड़क
टेंडर के खेल में फंसी सड़क में सबसे ताजा उदाहरण घंटा घर से खलीफाबाग चौक व कोतवाली चौक होकर तातारपुर जाने वाली सड़क का है. इस सड़क के निर्माण को लेकर डेढ़ साल पहले योजना बनी, जिसके प्राक्कलन में करीब 1.13 करोड़ रुपये शामिल किया गया. टेंडर की लंबी प्रक्रिया के कारण अप्रैल 2015 में फाइनल हुआ. जिसके नाम टेंडर फाइनल हुआ, उन्हें सड़क बनना महंगा लगा. इस कारण उन्होंने काम शुरू करने से पहले विभाग के साथ एग्रीमेंट नहीं किया और सड़क निर्माण की योजना छोड़ दी. नतीजा, फिर से पथ निर्माण विभाग को टेंडर की प्रक्रिया अपनायी पड़ी.
इसके बावजूद अबतक घंटा घर से खलीफाबाग चौक व कोतवाली चौक होकर तातारपुर जाने वाली सड़क का टेंडर फाइनल नहीं हो सका है, जिससे सड़क का निर्माण कार्य अटका है. यह तो एक मात्र उदाहरण है. शहर में ऐसी काई सड़कें और पुल-पुलिया हैं, जो टेंडर के खेल और सरेंडर के कारण फंसी रही. बाद में महंगी दरों पर योजनाएं पूरी हो सकी है.
समय पर नहीं हुआ टेंडर, तो दोगुना हुई निर्माण की लागत
बाइपास के निर्माण कार्य योजना को 14 साल पहले मंजूरी मिली थी और जमीन अधिग्रहण की कार्रवाई को पूरा किया गया था. योजना की प्राक्कलन राशि में करीब सौ करोड़ रुपये शामिल किया गया था. राष्ट्रीय उच्च पथ प्रमंडल, भागलपुर को टेंडर फाइनल करने में 14 साल लग गये. इस बीच पांच से ज्यादा बार टेंडर की प्रक्रिया अपनायी गयी. हर बार किसी न किसी कारण से टेंडर रद्द होता रहा. इस कारण एस्टिमेट को तीन बार रिवाइज करना पड़ा था. नतीजा सौ करोड़ का एस्टिमेट बढ़ कर पहले 150 करोड़, फिर 200 करोड़ और अब करीब 230.70 करोड़ पर फाइनल हुआ है. अगर समय पर टेंडर फाइनल होता, तो बाइपास निर्माण पर लागत सौ करोड़ रुपये होती और शहरवासियों को 10 साल पहले बाइपास मिल गया रहता.
दोबारा टेंडर फाइनल, फिर भी बना संशय
पिछले छह माह में भागलपुर-हंसडीहा रोड के निर्माण के लिए दो बार टेंडर निकाला गया. पहली बार में एकल टेंडर के कारण रद्द हो गया था, तो दोबारा में भी एकल टेंडर हुआ. इसे टेंडर कमेटी से मंजूरी मिलने में तीन माह लगा. अब जब टेंडर फाइनल हुआ है, तो यह निर्णय नहीं हो सका है कि ठेकेदार सड़क बनायेगा या नहीं.
दरअसल, टेंडर के तहत 10 प्रतिशत अधिक पर फाइनांसियल बिड खुला,मगर विभाग ने प्राक्कलित दर पर ही काम करने की बात कही. अब ठेकेदार की मरजी है कि विभाग की बात मान कर काम शुरू करेगा या नहीं. अगर ठेकेदार नहीं मानता है, तो अपनायी गयी टेंडर की प्रक्रिया रद्द हो जायेगी. इसके बाद नये सिरे से फिर टेंडर की प्रक्रिया होगी. भागलपुर-हंसडीहा रोड जो अबतक 48.48 करोड़ में बनने वाला था, उसका उसकी प्राक्कलित राशि अब एक अरब रुपये हो जायेगी.

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