हिंदी साहित्य की आलोचना अलोकतांत्रिक : प्रो चौथीराम-कला केंद्र में आयोजित प्रगतिशील आलोचना और समकालीन अस्मितावादी विमर्श विषयक संगोष्ठीफोटो आशुतोषसंवाददाता, भागलपुरबीएचयू वाराणसी के हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो चौथीराम यादव ने कहा कि हिंदी साहित्य जितना जनतांत्रिक है उसकी आलोचना उतनी ही अलोकतांत्रिक. प्रगतिशील आलोचक तक ने दलित, स्त्री एवं आदिवासी अस्मिता से जुड़े साहित्य का उचित मूल्यांकन नहीं किया. प्रो यादव माध्यम के तत्वावधान में कला केंद्र में आयोजित प्रगतिशील आलोचना और समकालीन अस्मितावादी विमर्श विषयक संगोष्ठी को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहे थे. उन्होंने अपने दो घंटे के व्याख्यान में प्रगतिशील आलोचना के अंतर्विरोधों को रेखांकित करते हुए समकालीन अस्मितावादी विमर्श विशेषत: दलित एवं स्त्री आंदाेलनों के प्रगतिशील तत्वों को अनदेखा करने को अनुचित बताया. उन्होंने अपने संबोधन के जरिये बुद्ध, कबीर और अबेंडकर के सामाजिक आंदोलनों की प्रतिरोधी परंपरा को सप्रमाण प्रस्तुत करते हुये समकालीन अस्मितावादी लेखन को आधुनिक जागरण का मुखर संकेत माना. संगोष्ठी की अध्यक्षता वरिष्ठ कथाकार देवेंद्र सिंह ने जबकि संचालन प्रेम प्रभाकर ने किया. इस अवसर पर डॉ उपेंद्र साह, डॉ योगेंद्र, धर्मेंद्र कुसुम, प्रेमचंद पांडेय, प्रवीर, दिवाकर घोष, कपिलदेव मंडल, अरूणाभ सौरभ, अमर कुमार चौधरी, सुनील कुमार सिंह, ओम सुधा, राेहित मिश्रा, मनोहर कुमार यादव, सुजाता कुमारी, किरण कुमारी, नेहा, बाॅबी, नीरज सिन्हा, कीर्ति कुमारी, धर्मेंद्र, शिवभगत, प्रकाश कुमार, अंजनी, मनोज, मिथिलेश कुमार आदि की मौजूदगी रही.
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हिंदी साहत्यि की आलोचना अलोकतांत्रिक : प्रो चौथीराम
हिंदी साहित्य की आलोचना अलोकतांत्रिक : प्रो चौथीराम-कला केंद्र में आयोजित प्रगतिशील आलोचना और समकालीन अस्मितावादी विमर्श विषयक संगोष्ठीफोटो आशुतोषसंवाददाता, भागलपुरबीएचयू वाराणसी के हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो चौथीराम यादव ने कहा कि हिंदी साहित्य जितना जनतांत्रिक है उसकी आलोचना उतनी ही अलोकतांत्रिक. प्रगतिशील आलोचक तक ने दलित, स्त्री एवं आदिवासी अस्मिता से जुड़े […]
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