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1880 में हुई थी जात्रा पार्टी की शुरुआत

1880 में हुई थी जात्रा पार्टी की शुरुआतभागलपुर के बंगाली समाज की ओर से दुर्गा पूजा के अवसर पर जात्रा नाटक अंग-बंग संस्कृति का जीवंत प्रमाण है. भागलपुर जिला गजेटियर के पेज नंबर 156 में दर्शाया गया है कि राजा नारायण बनर्जी, शिवचंद्र खान, बैद्यनाथ चक्रवर्ती और चंद्रनाथ बनर्जी ने अन्य लोगों से सहयोग लेकर […]

1880 में हुई थी जात्रा पार्टी की शुरुआतभागलपुर के बंगाली समाज की ओर से दुर्गा पूजा के अवसर पर जात्रा नाटक अंग-बंग संस्कृति का जीवंत प्रमाण है. भागलपुर जिला गजेटियर के पेज नंबर 156 में दर्शाया गया है कि राजा नारायण बनर्जी, शिवचंद्र खान, बैद्यनाथ चक्रवर्ती और चंद्रनाथ बनर्जी ने अन्य लोगों से सहयोग लेकर 1880 में जात्रा पार्टी की शुरुआत की थी. बाद में निमाई नियोगी, तीन कोड़ी घोष, चंद्र घोष ने भागलपुर आर्य थियेटर नाम से जात्रा पार्टी बनायी थी. साभार : भागलपुर : अतीत एवं वर्तमान, पुस्तक (लेखक -डॉ रमन सिन्हा)——–बंगाल का एक लोकनाट्य रूप है जात्रासंस्कृतिकर्मी प्रो चंद्रेश ने बताया कि भागलपुर मूल रूप से बंगालियों का शहर रहा. जाहिर है कि लगातार साहित्यिक-सांस्कृतिक गतिविधियों के कारण किसी जमाने में भागलपुर की पहचान मिनी कोलकाता के रूप में रही है. जात्रा के कारण भागलपुर को बाहर भी जाना जाता रहा है. जात्रा दरअसल बंगाल का एक लोक नाट्य रूप है और खुले में इसका मंचन होता है. मंच के तीनों तरफ दर्शक होते हैं और एक तरफ मंच के रूप में अभिनेता व अभिनेत्री इस्तेमाल करते हैं. यह कार्यक्रम रातभर चलता है. बीच में कई कारणों से यह परंपरा लुप्त सी हो गयी थी. लेकिन बीच-बीच में बंगाली समुदाय एवं स्थानीय लोगों के सहयोग से फिर से इसे जीवित करने की कोशिश होती रही है. शुरुआती दौर में बांग्ला के तमाम जाने-माने साहित्यिक-संस्कृतिकर्मी जात्रा से जुड़ कर अपने को गौरवान्वित महसूस करते थे. मशहूर उपन्यासकार शरतचंद आदि का इसमें सहयोग रहा. इतनी प्रसिद्धि मिली की हिंदी में भी जात्रा की परिपाटी शुरू हो गयी थी.

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