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पेंशन की आस में स्वतंत्रता सेनानी की पत्नी ने तोड़ा दम

नाथनगर: सरकारी उदासीनता से स्वतंत्रता सेनानी स्व चिंतामणि मिश्र की पत्नी निर्मला देवी (95) ने इलाज के अभाव में दम तोड़ दिया. पिछले 11 माह से उसे स्वतंत्रता सेनानी पेंशन राशि नहीं मिल रही थी. उनके पुत्र समुचित इलाज कराने में सक्षम नहीं थे. रविवार को रन्नुचक मकंदपुर आवास ‘पगला हाउस’ में निधन की सूचना […]

नाथनगर: सरकारी उदासीनता से स्वतंत्रता सेनानी स्व चिंतामणि मिश्र की पत्नी निर्मला देवी (95) ने इलाज के अभाव में दम तोड़ दिया. पिछले 11 माह से उसे स्वतंत्रता सेनानी पेंशन राशि नहीं मिल रही थी. उनके पुत्र समुचित इलाज कराने में सक्षम नहीं थे. रविवार को रन्नुचक मकंदपुर आवास ‘पगला हाउस’ में निधन की सूचना पाकर बड़ी संख्या में चिंतामणि बाबू के शुभचिंतक व परिजन जुटे थे. परिजनों ने बताया कि अकबरनगर में रेल लुटने और सोनबरसा में ब्रिटिश सिपाही से हथियार लुटने के लिए थाने पर धावा बोलने में चिंतामणि बाबू की अहम भूमिका थी.
आजादी की लड़ाई में ब्रिटिश सेना से लिया था लोहा : स्व चिंतामणि ने 1942 में गांधी जी के असहयोग आंदोलन में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया था. उस समय वे नाथनगर सुखराज राय हाइस्कूल में पढ़ाई कर रहे थे. उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत से आजादी पाने के लिए अपने गुरु शिक्षक दरियापुर के जगदीश बाबू के साथ आंदोलनकारियों को एकजुट किया. तिलकपुर के सियाराम सिंह बाबू के सानिध्य मिलने पर वे 1943 में घर छोड़ कर पूरी तरह क्रांतिकारी जीवन अपना लिया. चिंतामणि बाबू का रन्नुचक मकंदपुर स्थित ‘पगला हाउस’ पर क्रांतिकारियों का जुटान होता था. मां सबको खाना खिलाती थी. क्रांतिकारियों के बीच चिंतामणि बाबू घटोत्कच के नाम से प्रसिद्ध थे.

अंगरेजी हुकूमत के खिलाफ पहली लड़ाई उन्होंने हथियार खरीदने के लिए अकबरनगर के समीप ट्रेन लूट कर शुरू की. साथियों की मदद से सोनबरसा पुलिस स्टेशन पर सिपाही का हथियार छीनने के लिए धावा बोला. इस भीषण मुठभेड़ में उनके पांच साथी सरदार नित्यानंद सिंह, फौदी बाबू, अजरुन बाबू , निर्मल बाबू आदि पुलिस की गोली से शहीद हो गये. चिंतामणि बाबू को बांह में गोली थी. वे भाग कर मड़वा जयरामनगर पहुंचे, जहां जयराम बगीचा के पास डॉ गोपी बाबू की देखरेख इलाज कराया. साथियों और मां की जिद पर बसाया गृहस्थ जीवन : चिंतामणि बाबू की मां अपने इकलौते बेटा होने के कारण हमेशा डरती थी कि कब उसका लाल अंगरेज सिपाही की गोली शिकार हो जायें. चिंतामणि शादी कर किसी लड़की का जीवन बरबाद नहीं करना चाहते थे.

वह शादी नहीं करना चाहते थे. वह साथियों से बार-बार चिंतामणि को शादी करने के लिए राजी करने की आग्रह करती थी. साथियों के दबाव के बाद उन्होंने शर्त रखवायी की पहले लड़की को उनके क्रांतिकारी होने की बात बतायी जाये कि उनका पति कभी गोलियों का शिकार हो सकता है या अंगरेजों के जेल के सिखचों के अंदर जा सकता है. यदि यह लड़की को स्वीकार है और मेरे साथ सुख दुख सहन कर सकती है, तो वह शादी करने के लिए तैयार है. इस चुनौती को शाहकुंड प्रखंड के करहरिया गांव की मेरी मां निर्मला देवी, पिता गुदर मिश्र ने स्वीकार कर शादी की. आजादी की लड़ाई के दौरान मेरी मां ने पिता के वजह से काफी दुख सहन किया.

पारिवारिक पृष्ठभूमि
स्व चिंतामणि बाबू अपने पिता के इकलौता पुत्र थे. पिता स्व ईश्वर मिश्र और मां नोनो दाय नहीं चाहती थीं कि उसका इकलौता बेटा क्रांतिकारी बने और अंगरेज सिपाही की गोली का शिकार हो जाये. उसकी एकलौती बहन माहेश्वरी हमेशा उनके बुरे वक्त में साथ देती थी. स्व चिंतामणि बाबू अपने पीछे पांच पुत्र दीप नारायण मिश्र, विजय नारायण मिश्र, फणीन्द्र मिश्र, राजेश मिश्र और अशोक मिश्र तथा एक बेटी आशा देवी छोड़ गये हैं. घर की माली हालत के कारण निर्मला देवी इलाज नहीं करा पा रही थीं.

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