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भक्त की भावना के अनुरूप अवतरित होते हैं भगवान

कहलगांव. जिस प्रकार आग और पानी का कोई आकार नहीं होता, वैसे ही परमात्मा का कोई आकार नहीं होता. वह भक्तों की भावना के अनुरूप अलग-अलग अनगिनत रूपों में अवतरित होते हैं. इसका यह अर्थ नहीं ईश्वर अनेक है. वस्तुत: परमेश्वर एक ही है. जब-जब भक्तों पर विपदा आती है और भक्त की भक्ति सच्ची […]

कहलगांव. जिस प्रकार आग और पानी का कोई आकार नहीं होता, वैसे ही परमात्मा का कोई आकार नहीं होता. वह भक्तों की भावना के अनुरूप अलग-अलग अनगिनत रूपों में अवतरित होते हैं. इसका यह अर्थ नहीं ईश्वर अनेक है. वस्तुत: परमेश्वर एक ही है. जब-जब भक्तों पर विपदा आती है और भक्त की भक्ति सच्ची होती है तब-तब ईश्वर भक्त की भावना के अनुरूप रूप धारण कर अवतरित होते हैं और उसका कल्याण करते हैं. जिस प्राणि का मन स्थिर नहीं होता, जिसकी निष्ठा कमजोर होती है वह भटकता रहता है. वह ईश्वर को कभी एक रूप में देखता है. कुछ ही देर बाद वह उन्हें दूसरे रूप में देखने लगता है. वास्तव में ईश्वर एक है. ईश्वर के विविध रूपों में मातृ शक्ति सबसे प्रिय है. माता शीतला सांसारिक तापों से त्रस्त भक्तों को अपने समीप बुलाती है और उन्हें शीतलता प्रदान करती है. उक्त बातें द्वारका शारदा पीठाधीश्वर जगत गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के परम शिष्य दांडी स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद महाराज पकड़तल्ला के माता शीतला मंदिर के एकादश पाटोत्सव पर संध्या प्रवचन में कही. प्रवचन के दौरान दीपक कुमार मिश्र हिमांशु ने भक्ति भजन प्रस्तुत किया.

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