भागलपुर: नाम-मुन्ना. उम्र-आठ साल. काम-भीख मांगना. घर का पता पूछा, तो बताया रेलवे स्टेशन. उससे पूछताछ करने से पहले वह परिवार के साथ खरीदारी कर लौट रहे एक व्यक्ति के आगे हाथ फैलाया था, लेकिन उसे निराशा हाथ लगी. मुन्ना जैसे और भी बच्चे मंगलवार को बाजार में घूम रहे थे. वे उनलोगों के सामने हाथ फैलाते दिखे, जिनसे उन्हें कुछ न कुछ मिल जाने की उम्मीद लग रही थी.
धनतेरस के बाजार में जहां अरबों की खरीद-बिक्री हो रही थी, वहीं बाजार में कुछ ऐसे भी मासूम थे, जो धन को तरस रहे थे. मुन्ना ने बताया कि वह पढ़ा-लिखा नहीं है. उसकी रोजी-रोटी इसी तरह चलती है. जब कुछ नहीं मिलता है, तो प्लास्टिक के बोतलों में पानी भर कर बेचते हैं. जब पानी के बोतल भी नहीं बिकते, तो दिन-रात भूखे गुजार देना पड़ता है. खलीफाबाग चौक से लेकर स्टेशन चौक तक चार-पांच ऐसी अस्थायी दुकानें दिखी, जहां पिता सामान बेच रहे थे और उनके बच्चे ग्राहकों को बुलाने में लगे थे. इन्हीं में से एक वेराइटी चौक के समीप छोटे-छोटे बरतन बेच रहे थे.
वे तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के पिछले हिस्से में बसे बिंद टोली से आये थे. उनके दो बच्चे विकास और विलास क्रमश: छठी व सातवीं कक्षा के छात्र हैं. उनके पिता ने बताया कि आज अच्छा मौका दिखा. कुछ कमाई हो जायेगी, तो ठीक रहेगा. सामान नहीं बिके, तो बड़ी दिक्कत हो जायेगी.