यूजीसी ने 2009 में रेगुलेशन पास किया था, इसका 2013 में टीएमबीयू में इंप्लीमेंटेशन हुआ. इस दौरान पीएचडी करने वाले छात्र का भविष्य अधर में लटक गया. क्योंकि नये रेगुलेशन के मुताबिक उन्होंने छह माह का रिसर्च मेथोडोलॉजी कोर्स नहीं किया था. पीएचडी करने के बावजूद व्याख्याता के लिए उनकी योग्यता पर सवाल खड़े होते रहे. इन्हें नियुक्ति में बुलाया तक नहीं जाता है. इसमें छात्रों को कोई कसूर नहीं है. इसलिए टीएमबीयू इस मामले पर विचार करने के लिए सरकार से निवेदन करने वाला है. 30 मई को हुई सिंडिकेट की बैठक में एमएलसी डॉ संजीव सिंह ने यह मामला उठाया था.
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टीएमबीयू: 2009-13 के बीच पीएचडी किये छात्रों को मिल सकती है राहत, सरकार को भेजा जायेगा मामला
भागलपुर : सरकार ने अगर टीएमबीयू की अपील पर ध्यान दिया तो 2009 से 2013 के बीच में पीएचडी करने वाले छात्रों को काफी राहत मिल सकती है. टीएमबीयू की एकेडमिक काउंसिल की शुक्रवार को कुलपति प्रो नलिनी कांत झा की अगुवाई में बैठक में हुई. इसमें सर्वसम्मति से 2009 से 2013 के बीच पीएचडी […]
भागलपुर : सरकार ने अगर टीएमबीयू की अपील पर ध्यान दिया तो 2009 से 2013 के बीच में पीएचडी करने वाले छात्रों को काफी राहत मिल सकती है. टीएमबीयू की एकेडमिक काउंसिल की शुक्रवार को कुलपति प्रो नलिनी कांत झा की अगुवाई में बैठक में हुई. इसमें सर्वसम्मति से 2009 से 2013 के बीच पीएचडी करने वाले छात्रों का मामला सरकार को भेजने का निर्णय लिया गया. सरकार को लिखा जायेगा कि इन छात्रों को व्याख्याता नियुक्ति में बीपीएससी द्वारा न्योता दिया जाय.
सिलेबस रिवाइज करने पर सहमति
काउंसिल की बैठक में सिलेबस रिवाइज करने पर भी सहमति बनी. यूजीसी की गाइडलाइन के मुताबिक तीन साल में सिलेबस बदलना जरूरी है. इसके पूर्व वीसी रमाशंकर दुबे के कार्यकाल के दौरान 2015 में भी सिलेबस रिवाइज किया गया था.
जेएनयू की तर्ज पर सीबीसीएस कोर्स
जेएनयू और पांडीचेरी की तर्ज पर टीएमबीयू में सीबीसीएस (च्वाइस बेस्ड क्रेडिट सिस्टम) कोर्स शुरू होगा. सेमेस्टर कोर्स सिस्टम को सीबीसीएस में भी बदलने का फैसला लिया गया है. यूजीसी गाइडलाइन के मुताबिक 34 फीसदी कोर्स सीबीसीएस होगा. पूर्व में सेकेंड सेमेस्टर में एक पेपर में यह लागू किया गया था. मगर कई कठिनाइयां पैदा हुई थी. इसके लिए एक सब कमेटी गठित की गयी है.
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