24.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

यहां गुणवत्ता नहीं, वहां के लिए हरा पत्ता नहीं

भागलपुर: सरकारी स्कूलों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा आज भी सपना ही है. जिन प्रधानाध्यापकों के जिम्मे सरकारी स्कूलों में संजीदगी के साथ पठन-पाठन के प्रबंधन और पढ़ाने की भी जिम्मेवारी है, उन्हें फाइलों में व्यस्त कर दिया गया है. निजी स्कूलों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दिलाना गरीब तबके के लोगों के लिए सपना ही है. निजी स्कूलों […]

भागलपुर: सरकारी स्कूलों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा आज भी सपना ही है. जिन प्रधानाध्यापकों के जिम्मे सरकारी स्कूलों में संजीदगी के साथ पठन-पाठन के प्रबंधन और पढ़ाने की भी जिम्मेवारी है, उन्हें फाइलों में व्यस्त कर दिया गया है.

निजी स्कूलों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दिलाना गरीब तबके के लोगों के लिए सपना ही है. निजी स्कूलों का फी चुकाने में मध्यमवर्गीय परिवार के लोग परेशान हो जाते हैं. निजी स्कूलों में शुल्क निर्धारण का कोई मापदंड नहीं है. अभिभावक शिक्षा पदाधिकारियों से शिकायत करते हैं, तो जवाब यही मिलता है कि यह उनके बूते की बात नहीं है. बच्चों को बेहतर शिक्षा दिलाने में दर्द ङोल रहे अभिभावकों के इस सवाल से जनप्रतिनिधि बच नहीं पायेंगे कि आखिर सरकारी स्कूलों में ही ऐसी शिक्षा क्यों नहीं मिले कि निजी स्कूलों का मुंह नहीं देखना पड़े. मूल रूप से प्रधानाध्यापकों को बेहतर पठन-पाठन उपलब्ध कराने की जिम्मेवारी है. जानकार मानते हैं कि सरकारी स्कूलों के प्रधानाध्यापकों को अन्य कार्यो का प्रभार देकर उनकी मूल जिम्मेवारी से भटका दिया गया है. वे भवन निर्माण कराने, मध्याह्न् भोजन संचालित करने, उपयोगिता प्रमाणपत्र तैयार करने आदि कामों में व्यस्त रहते हैं. उनकी यह व्यस्तता शिक्षा विभाग के दफ्तरों में हर दिन देखी जा सकती है. दूसरी ओर स्कूल के शेष शिक्षक जैसे-तैसे अपनी जिम्मेवारी निभा देते हैं.

शिक्षकों में गुणवत्ता भी जरूरी
इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि सरकारी स्कूलों में अधिकतर शिक्षकों में गुणवत्ता की कमी है. उन्हें प्रशिक्षण देने की बात की जाती है. समय-समय पर प्रशिक्षित भी किया जाता है, लेकिन प्रशिक्षण की अहमियत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पिछले साल सुलतानगंज में प्रशिक्षण कार्यक्रम का निरीक्षण करने पहुंचे शिक्षाधिकारी को महज तीन शिक्षक उपस्थित मिले थे. अनुपस्थित शिक्षकों को दंड के रूप में एक दिन का वेतन काट लिया गया था.

रेमेडियल क्लास को करते हैं नजरअंदाज
प्रत्येक स्कूलों को निर्देश है कि वैसे बच्चे, जो अपनी कक्षा के अनुरूप पढ़ाई नहीं कर पा रहे हैं, उनके लिए छुट्टी होने से पहले रेमेडियल क्लास चलायी जाये. बावजूद इसके विरले ही स्कूल हैं, जहां इस निर्देश का अनुपालन होता है.

मध्य विद्यालयों में ठूंस दिये बच्चे
जिले में 156 प्राथमिक विद्यालय ऐसे हैं, जिनके लिए शिक्षा विभाग जमीन नहीं तलाश पाया है. इन स्कूलों को नजदीकी मध्य विद्यालयों से टैग कर दिया गया है. जमीनी सच्चई यह है कि इनमें अधिकतर स्कूल आज भी अपने पूर्व के स्थानों पर चलाये जा रहे हैं.

प्रधान सचिव ने भी उठाया था सवाल
विद्यालयों की हर दिन की गतिविधि पर रिपोर्ट तैयार करने और मुख्यालय को भेजने की जिम्मेवारी सीआरसीसी (संकुल समन्वयक) को सौंपी गयी है. दो माह पूर्व मुख्यालय में हुई शिक्षा पदाधिकारियों की राज्यस्तरीय बैठक में प्रधान सचिव ने टिप्पणी की थी कि सीआरसीसी की रिपोर्ट देख कर ऐसा नहीं लगता कि कोई भी सीआरसीसी स्कूल जाकर रिपोर्ट तैयार किये हों.

हर साल आधी-अधूरी पढ़ाई
स्कूलों को नि:शुल्क पुस्तकें सत्र शुरू होने से पहले नहीं मिल पाती है. पिछले तीन साल की बात करें, तो आधा सत्र बीत जाने के बाद बच्चों को पुस्तकें मिल पाती है. इस बार भी मार्च बीतने को है और अप्रैल से नया सत्र शुरू हो जायेगा और किताबों का पता-ठिकाना नहीं है. उसमें भी यह जरूरी नहीं कि सिलेबस की सारी पुस्तकें बच्चों को मिल ही जायें. सैकड़ों बच्चे बिना किताबों के ही रह जाते हैं. ऐसी स्थिति में गुणवत्तापूर्ण पढ़ाई की उम्मीद नहीं की जा सकती.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें