बांका : देश को आजाद होने से करीब 70 साल बीत चुके हैं. बावजूद आज भी गरीब लोग दर-दर की ठोकरें खाने को विवश है. सरकार के द्वारा गरीब लोगों के लिए विभिन्न तरह की योजनाएं चल रही है. लेकिन जिला प्रशासन के अधिकारी व स्थानीय लोगों के कार्यशैली से आज भी गरीबों की आवाज दबी हुई है. इसका साफ असर शहर में दिख रहा है
और इस मामले में नगर पंचायत प्रशासन भी अंजान बनें हुए है. शहर में बने गरीबों के आशियाने पर आमजन से लेकर जिला प्रशासन के अधिकारी तक हावी है. चाहें वह रिक्सा पड़ाव हो या रैन बसेरा. सभी पर कहीं ने कहीं स्थानीय लोग एवं जिला प्रशासन के लोगों के द्वारा कब्जा कर रखा गया है. ऐसे में वैसे गरीब लोग कहां जायें यह सोचने वाला कोई नहीं है. बांका नगर पंचायत क्षेत्र में दो रिक्सा पड़ाव है. जो जिला प्रशासन के द्वारा बनवायें गये है लेकिन दोनों रिक्सा पड़ाव में कभी भी रिक्सा रखा ही नहीं गया.
रिक्सा पड़ाव में स्थानीय निवासियों के द्वारा अपनी मर्जी के अनुसार अपनी चार पहिया वाहन या फिर गुमटी खोलकर उसमें अपना दुकान लगाकर अतिक्रमण कर रखें है. वहीं दूसरी ओर गरीबों के लिए बने आशियानें रैन बसेरा में पूर्व के दिनों में जिला परिषद के कार्यालय संचालिता होता था. जब जिला परिषद का कार्यालय अन्य जगहों पर स्थानांतरित हो गया तो उक्त कार्यालय में श्रम नियोजन विभाग का कार्यालय एवं प्लस टू शिक्षकों की बहाली से संबंधित कार्य संचालित होने लगे. जिला परिषद कार्यालय खाली होने के बाद ऐसा लग रहा था कि अब रैन बसेरा का सही उपयोग हो पायेगा. लेकिन उक्त कार्यालय का खुल जाने से गरीबों की रही-सही आस पूर्णत: समाप्त हो गयी. बरसात व ठंड के दिनों में फिर किसी और का आशियाना तलाशना होगा. तभी उनकी रातें कटेगी.