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गतिरोध. भवन व संसाधन के अभाव में मरीजों को नहीं मिल रही सुविधा

बांका में 2002 से काम कर रहा जिला यक्ष्मा केंद्र अपने मरीजों को बेहतर सुविधा देने में अक्षम साबित हो रहा है. भवन व अन्य संसाधनों की कमी के कारण यह लक्ष्य हासिल करने में पीछे है. बांका : जिला यक्ष्मा केंद्र खुद तपेदिक का शिकार होकर कराह रहा है. कहने को तो यह जिला […]

बांका में 2002 से काम कर रहा जिला यक्ष्मा केंद्र अपने मरीजों को बेहतर सुविधा देने में अक्षम साबित हो रहा है. भवन व अन्य संसाधनों की कमी के कारण यह लक्ष्य हासिल करने में पीछे है.

बांका : जिला यक्ष्मा केंद्र खुद तपेदिक का शिकार होकर कराह रहा है. कहने को तो यह जिला यक्ष्मा केंद्र है लेकिन इसकी हालत किसी स्वास्थ्य उपकेंद्र से बेहतर नहीं. चार कमरों वाले एक छोटे से जर्जर भवन में चल रहे इस केंद्र के कर्मियों से बेहतर और कौन बता सकता है कि इसके संचालन में उन्हें किन परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. बांका में जिला यक्ष्मा केंद्र 2002 से कार्यरत है.
मार्च 2004 में पुनरीक्षित राष्ट्रीय यक्ष्मा नियंत्रण कार्यक्रम के तहत इसे जिला यक्ष्मा केंद्र का दर्जा प्राप्त हुआ. तब से यहां एक ही पदाधिकारी डा. जितेंद्र प्रसाद इस केंद्र के प्रभार में है. अब तो उनका पदस्थापन इसी विभाग में संचारी रोग पदाधिकारी के रूप में अधिसूचित हो चुका है. जुलाई 2015 से वे यहां इसी पद पर है. जानकारी के अनुसार पुनरीक्षित राष्ट्रीय यक्ष्मा नियंत्रण कार्यक्रम के तहत यक्ष्मा मरीजों को तीन श्रेणियों में विभक्त कर उनकी जांच और उपचार की व्यवस्था की गयी. प्रथम श्रेणी में नये मरीज जो जांच के लिए आते हैं उन्हें शामिल किया गया.
द्वितीय श्रेणी में पहले से उपचारित तथा तृतीय श्रेणी में क्रॉनिक यक्ष्मा मरीज शामिल किये गये. आरंभ में इन मरीजों की चिकित्सा इसी केंद्र से की जाती थी. लेकिन अब इसका विस्तार जिले भर में स्थापित केंद्रों तक कर दिया गया है. जिले के सभी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में यक्ष्मा जांच एवं दवा वितरण केंद्र चलाये जा रहे हैं. हर ऐसे केंद्र पर एक पर्यवेक्षक और एक लैब टेक्नीशियन प्रतिनियुक्त है.
भवन व संसाधनों की घोर कमी:
जिला यक्ष्मा केंद्र में मोटे तौर पर सिर्फ मरीजों की जांच की व्यवस्था है. अलबत्ता नगर पंचायत क्षेत्र के मरीजों को दवा यहां जरूर दी जाती है. केंद्र का भवन वर्ष 2004 में बना था. इसमें चार कमरे है. एक कमरे में दवा भंडारण तो दूसरे में जांच केंद्र चलता है. एक कमरे में ऑफिस है जबकि बचा हुआ एक छोटा सा कमरा मरीजों के लिए रखा गया. अब इस कमरे में भी एमडीआर यानि मल्टी ड्रग रेसिसटेंट मरीजों की जांच के लिए आयी अत्याधुनिक मशीन स्थापित की जा रही है.
यह मशीन 10 दिन पूर्व ही यहां भेजी गयी है. यह मशीन उन मरीजों की जांच करेगी जिनकी जांच पहले सिर्फ पटना में ही होती थी. इसके लिए या तो मरीजों को पटना जाना होता था या फिर उनके सैंपल पटना भेजे जाते थे. इस मशीन के संचालन के लिए केंद्र के वरीय यक्ष्मा प्रयोगशाला पर्यवेक्षक तथा प्रयोगशाला प्रावैधिक को खास तौर से प्रशिक्षित किया गया है.
पीएचसी से होता है दवा वितरण
स्थिति को देखते हुए जिले के सभी पीएचसी पर जांच और दवा वितरण केंद्र स्थापित कर दिया गया है. मरीजों को जांच के बाद दवाएं उनके घर तक पहुंचाने की व्यवस्था की गयी है. इसके लिए आशा कार्यकर्ताओं तथा आंगनबाड़ी सेविकाओं का सहयोग लिया जा रहा है. मरीजों को दवा दिलाने के एवज में आशा व आंगनबाड़ी सेविकाओं को प्रति मरीज 1 से 5 हजार रुपये तक का पारितोषिक भी दिया जाता है. वर्ष 2015-16 के दौरान इस मद में 9.5 लाख रुपये बतौर पारितोषिक वितरित किये गये. 2015-16 में 8 हजार 699 संदिग्ध मरीजों की जांच की गयी.
इनमें 1136 मरीज इलाज के योग्य पाये गये. विभागीय जानकारी के मुताबिक 758 नये मरीजों के अलावा 244 उपचारित, 54 बाल मरीजों तथा 61 एमबीआर मरीजों की चिकित्सा की गयी.

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