कुछ हुए पूरे कुछ रह गये अधूरे
बांका: बांका की सरजमी से जुड़े कुछ ऐसे शख्स हैं, जिन्होंने देश और सूबे का मान बढ़ाते हुए इस जिले की पहचान देश-विदेश तक पहुंचायी, मैदान राजनीति का हो या खेल का बात विद्वता की हो या फिर काबिलियत की हर जगह बांका के लोगों ने अपनी मजबूत स्थिति दर्ज करायी है. उन्हीं में से एक नाम स्व दिग्विजय सिंह का है. उन्होंने केंद्र में विदेश, वित्त, उद्योग व रेल राज्यमंत्री के दायित्वों का सफलतापूर्वक निर्वाह करते हुए संसदीय क्षेत्र का नाम बढ़ाया. 14 नवंबर 1955 को जमुई जिले के गिद्धौर नया गांव में जन्म लिए स्व दिग्विजय सिंह ने 1990 और 2004 में राज्य सभा, 1998,99 और 2009 में लोक सभा पहुंचे. 2009 में उन्होंने बांका संसदीय क्षेत्र से दिग्गजों को मात देते हुए निर्दलीय चुनाव जीत कर अपनी लोकप्रियता का परिचय दिया. अपनी विद्वता और वाकपटुता के बल पर उन्होंने देश-विदेश के मंचों पर देश के साथ ही बांका का भी लोहा मनवाया. पटना से लेकर जवाहर लाल नेहरू विश्व विद्यालय दिल्ली तक अपनी छाप छोड़ी. जेएनयू में छात्र संगठन के सदस्य रहे. समता पार्टी के संस्थापक सदस्य बने. 1983 में पूर्व प्रधानमंत्री स्व चंद्रशेखर के साथ भारत यात्र की. 1999 में दादा राष्ट्रीय निशानेबाजी संघ के सदस्य बने.
जनवरी 2009 में गोधरा कांड के बाद गुजरात में फैली हिंसा के दौरान वहां शांति यात्र की. टोक्यो में सरकारी नौकरी को ठुकरा कर उन्होंने गरीब, पिछड़े व मानवता के हक की लड़ाई के लिए राजनीति को माध्यम बनाया. बांका में मंदार महोत्सव, पावरग्रिड के उदघाटन एवं अन्य अवसर पर देश के तत्कालीन उपराष्ट्रपति स्व. भैरो सिंह शेखावत, पूर्व प्रधानमंत्री स्व. चंद्रशेखर, समाजवादी नेता जार्ज फर्नाडिस, भाजपा के दिग्गज नेता लाल कृष्ण आडवाणी, समाजवादी विचारक और विद्वान रघु ठाकुर, सुप्रसिद्ध पत्रकार स्व. प्रभाष जोशी, एमजे अकबर, फिल्म अभिनेता आदित्य पंचोली, पाश्र्व गायक अल्ताफ रजा आदि ने बांका की सरजमी पर कदम रखा. इसके लिए बांका वासियों के दिलों में उनका नाम अमर हो गया. मई 2010 में उन्होंने बांका की आखिरी यात्र की. 24 जून 2010 को लंदन के एक अस्पताल में उन्होंने आखिरी सांस ली. रेल, संचार व बिजली के क्षेत्र में बांका का विकास कर उन्होंने जिले को नयी पहचान दी. यहां के लोग आज भी अपने लोकप्रिय सांसद को याद करते हुए कहते है कि दादा ने बांका को रेल के मानचित्र पर लाकर हजारों लोगों का सपना पुरा किया, लेकिन कुछ सपने आज भी अधूरे हैं जिसकी कमी खलती है.
फूलों से था दादा को प्यार
बुलंद आवाज और मुस्कुराता चेहरा, क्षेत्र कोई भी हो हमेशा संयम के साथ योद्धा की तरह हर मुसीबत को चुनौतियों की तरह लेकर सामना करने वाले दिवंगत सांसद दिग्विजय सिंह ने कभी हार नहीं मानी. जिंदगी के अंतिम सांस तक अपने स्वभाव के अनुरूप ही काम किया. सांसद प्रतिनिधि वेदानंद सिंह एवं प्रवक्ता काशी नाथ चौधरी ने कहा कि दादा प्रकृति प्रेमी थे. फूल उन्हें बहुत पसंद था. उनका पैतृक गांव हो या दिल्ली का सांसद आवास दोनों ही जगह फूलवारी में हर समय रंग-बिरंगे फूल महकते थे. बच्चों से भी उन्हें बहुत लगाव था. उनकी धर्म पत्नी बांका सांसद पुतुल कुमारी ने कहा कि दादा का कहना था कि ना सर झुका के जियें हम, न सर छुपाकर जियें हम, मेरी ख्वाहिश है कि जिंदगी की एक रात कम जियें तो कम ही सही, नजर से नजर मिला कर जियें हम.