बांका : सूबे के सरकारी विद्यालयों का हाल किसी से छिपा नहीं है. वैसे अभिभावक जो यहां के पढ़ाई की गुणवत्ता से वाकिफ हैं वह अपने बच्चों को किसी प्राइवेट विद्यालय में ही पढ़ाने चाहते हैं वहीं दूसरी तरफ ऐसे विद्यालय अभिभावकों की कमजोरी का फायदा उठाने से नहीं चुकते हैं. जबकि यहां की शिक्षा की व्यवस्था जो भी हो लेकिन छात्रों को मिलनेवाली अधिकांश सुविधाएं बच्चों को दी जानेवाली रसीद में ही दिखती है. स्मार्ट क्लास दिखावा मात्र है व जेनेरेटर पर अधिक लोड ना आये इसके लिए सिर्फ प्राचार्य कक्ष व कार्यालय का ही पंखा व कूलर ऑन होता है. बच्चों के अभिभावक इसकी फीस भरने को मजबूर हैं.
वहीं क्षेत्र के कई निजी विद्यालय बिना शिक्षा विभाग से निबंधन के ही संचालित हो रहे हैं. निजी विद्यालय के संचालक सत्र के अंत होते ही क्षेत्र में अभियान चला कर अभिभावकों से संपर्क प्रतिवर्ष कर रहे हैं. इन विद्यालयों में नामांकन शुल्क के साथ शिक्षण शुल्क, विकास शुल्क, वार्षिक शुल्क, बिजली शुल्क, पुस्तकालय शुल्क, क्रीड़ा शुल्क, विविध शुल्क व अन्य प्रकार के शुल्क मनमाने ढंग से वसूली की जा रही है. शुल्क वसूली के बावजूद भी छात्रों को समुचित सुविधा नहीं मिल रही है.
प्रशासनिक व्यवस्था है शिथिल : सरकार द्वारा निर्देशित यू डायस प्रपत्र को अधिकांश विद्यालय प्रबंधन नहीं भरते हैं. जानकारों का मानना है कि इस दिशा में सरकारी तंत्र शिथिलता बरत रहे हैं. नतीजतन अभिभावकों को इसकी सही जानकारी नहीं मिल पाती. जिले के मात्र दो सौ विद्यालय ने ही यू डायस प्रपत्र भरा है, जबकि जिले में छोटे-बड़े निजी विद्यालयों की संख्या करीब एक हजार है.
अभिभावक गोष्ठी का नहीं होता आयोजन
अभिभावकों का क हना है कि नये सत्र में नामांकन की बारी आती है तो घर घर जाकर अपने संस्थान की बेहतर व्यवस्था का बखान कर एक बार सेवा देने या पधारने का निवेदन करते हैं. अधिकांश विद्यालयों में प्रशिक्षित या बेहतर जानकारी वाले शिक्षक नहीं होते हैं. विद्यालय में पेयजल, शौचालय, बैठक व्यवस्था व अन्य व्यवस्था का घोर अभाव है. एक ही वर्ग कक्ष में पांच दर्जन से अधिक छात्रों को पढ़ाया जाता है. खेल के नाम पर शुल्क तो लिये जाते हैं पर खेल का मैदान नहीं है. कई बार विभिन्न प्रकार की प्रतियोगिता के नाम पर भी रुपये वसूल किये जाते हैं. कुछ विद्यालय शारीरिक सह खेल शिक्षक होने का दावा तो करते हैं पर वे शिक्षक खुद प्रशिक्षित नहीं हैं. शिक्षकों से 1000 से लेकर अधिकतम 5000 रुपया मासिक पर काम करवाया जाता है. ऐसे बेरोजगारी का दंश ङोल रहे शिक्षकों में विद्यालय प्रबंधन से नाराजगी बनी रहती है. जिस प्रकार नामांकन के लिए निवेदन करते हैं उस प्रकार शुल्क वृद्धि के विषय पर अभिभावक गोष्ठी का आयोजन नहीं करते हैं.
कहते हैं जिला शिक्षा पदाधिकारी
शुल्क वृद्धि के विषय में डीइओ अभय कुमार ने बताया कि विद्यालय संचालक के मनमाने रवैये की जानकारी बिल्कुल सही है. सभी निजी विद्यालय प्रबंधन को डाटा कैप्चर फार्म भरने का निर्देश दिया गया है. जिले भर से करीब 200 से भी कम फार्म भरे गये हैं. इस बाबत अभियान चलाकर प्रपत्र नहीं भरनेवाले विद्यालय संचालकों पर कार्रवाई की जायेगी.
क्या है यू डायस प्रपत्र
इस प्रपत्र के अंतर्गत विद्यालय में शिक्षकों की स्थिति, वर्ग कक्ष की संख्या, सेक्शन, छात्र-छात्रओं का कोटिवार विवरण, फर्नीचर उपस्कर की स्थिति, गरीबी रेखा से नीचे जीवन बसर करनेवाले छात्रों के नामांकन सहित अन्य जानकारी का विवरण होता है. इसे प्रपत्र में भरकर राज्य सरकार को भेजा जाता है. सरकारी, गैर सरकारी, संस्थागत व अन्य प्रकार के सभी विद्यालय के लिए यू डायस प्रपत्र भरना आवश्यक है. राज्य सरकार द्वारा इस सूची को केंद्र सरकार के पास भेजा जाता है.