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लिंगानुपात में कमी, खतरे की घंटी
सरकार की लाख कोशिशों के बावजूद कन्या भ्रूण हत्या पर रोक नहीं औरंगाबाद (ग्रामीण) : हमारे देश की यह एक अजीब विडंबना है कि सरकार की लाख कोशिशों के बावजूद समाज में कन्या-भ्रूण हत्या की घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही हैं. स्त्री-पुरुष लिंगानुपात में कमी हमारे समाज के लिए कई खतरे पैदा कर सकती हैं. […]
सरकार की लाख कोशिशों के बावजूद कन्या भ्रूण हत्या पर रोक नहीं
औरंगाबाद (ग्रामीण) : हमारे देश की यह एक अजीब विडंबना है कि सरकार की लाख कोशिशों के बावजूद समाज में कन्या-भ्रूण हत्या की घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही हैं. स्त्री-पुरुष लिंगानुपात में कमी हमारे समाज के लिए कई खतरे पैदा कर सकती हैं.
पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं की संख्या कम देखते हुए सरकार द्वारा बेटी बचाओ अभियान चलायी गयी. इसका यह भी उद्देश्य था कि लड़कों की बराबरी लड़कियों को उनका सही हक दिलाना. लेकिन, इस अभियान को समाज के कुछ लोग आज भी दबाने पर तुले हुए हैं. लिंग निर्धारण का कार्य आज भी तेजी से हो रहा है.
ये अलग बात है कि यह काम चोरी-चुपके से होता है. समाज में भ्रूण हत्या को लेकर कई तरह के सवाल उठते है. लेकिन, इस ओर पहल के नाम पर कुछ खास नहीं होता है.
गर्भस्थ भ्रूण अपनी हत्या के विरुद्ध कानूनी अपील समाज से करती है. लेकिन, समाज ही उसे मारने पर आमदा है. औरंगाबाद जिला मुख्यालय सहित विभिन्न प्रखंड मुख्यालयों में अल्ट्रासाउंड संचालक या उनके चिकित्सक लिंग निर्धारण करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं. तीन हजार से लेकर छह हजार रुपये तक वसूल कर लिंग निर्धारण किया जाता है. ताज्जुब की बात तो यह है कि इसमें ऐसे भी चिकित्सक शामिल हैं जो बड़े नामवाले है. नवीनगर प्रखंड के एक गांव की महिला आशा देवी तीन बेटियों के बाद एक बेटा चाहती थी. इसके लिये वह लिंग निर्धारण कराने शहर के ही एक चिकित्सक से मिली.
चिकित्सक ने चार हजार रूपये लेकर उसका लिंग निर्धारण किया और फिर गर्भपात करा दिया. इसके लिये छह हजार रूपये अलग से लिये. इसी तरह जिले में कई अल्ट्रासाउंड संचालक ऐसे भी हैं जो इस कार्य में पूरी तरह लिप्त हैं. हालांकि अधिकांश अल्ट्रासाउंड संस्थानों की जांच के बाद उनके कार्य को बंद करा दिया गया थ. बावजूद चोरी-चुपके से लिंग निर्धारण का काम अभी भी कर रहे हैं. बाहर से उनका शटर गिरा हुआ रहता है. लेकिन, अंदर में वे अपने कार्य को कर रहे होते हैं.
स्वास्थ्य विभाग को इससे कोई मतलब नहीं है. यहां बता दें कि लिंग निर्धारण के बाद गर्भपात कराने वालों की भी संख्या कम नहीं है. गर्भपात करानेवाली महिला को परिजन तो दबाव देते ही हैं, झोलाछाप चिकित्सक भी परामर्श देने से नहीं हिचकते. शहर के महाराजगंज रोड में कुछ महीने पूर्व नगर पर्षद के कूड़ेदान में 15 दिनों के भीतर दो भ्रूण मिले थे.
उस वक्त छात्र संगठन के नेताओं ने जम कर हंगामा किया था. रफीगंज, नवीनगर व अंबा में भी ऐसे मामले सामने आये थे. उस वक्त स्वास्थ्य विभाग व पुलिस विभाग के पदाधिकारियों ने मामले की छानबीन करने का आश्वासन दिया था. लेकिन, उनका आश्वासन सिर्फ और सिर्फ आश्वासन ही रह गया. भ्रूण हत्या के मामले सामने इस लिये जल्दी नहीं आते हैं कि अपराध करनेवाले और अपराध करानेवाले सबूत को ही मिटा देते हैं.
लड़कियां भी नहीं हैं पीछे
आज जितनी गर्भपात विवाहित महिलाएं कराती हैं उससे कहीं अधिक लड़कियां ऐसा करती हैं. ये भले ही चुपके से अपना गर्भपात करा रही हों. पर समाज में ये चर्चा का विषय बना हुआ है. नाम न छापने के शर्त पर सदर अस्पताल के एक चिकित्सक ने बताया कि ऐसा ज्यादातर निजी क्लिनिकों में हो रहा है. जहां पूरी तरह से इस बात को गोपनीय रखी जाती है. आज जो जिले का लिंग अनुपात कम है. इसके लिये गर्भपात भी एक कारण हो सकता है. एक हजार पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं की संख्या 914 है.
करनी होगी पहल
रौट्रैक्ट मौर्य के पूर्व अध्यक्ष संतोष यादव, मुखिया एस शाहजादा शाही, समाजसेवी उदय उज्ज्वल का मानना है कि आज जितनी कन्या भ्रूण की हत्या हो रही है उसके जिम्मेवार केवल गर्भपात करानेवाले ही नहीं है. बल्कि, पूरा समाज भी है.
आम तौर पर चर्चा यह होती है कि एक झोलाछाप चिकित्सक भी गर्भपात आसानी से करा सकता है. इसके लिये जिम्मेवारों को समाज में आये नये बदलाव के अनुसार पहल करनी होगी. समाज के डर से स्त्री व अविवाहित युवतियां इस बात की स्वीकार नहीं कर पाती और गर्भपात करा लेती हैं. लड़कियों को आगे आकर बताना चाहिए कि उनके गर्भ में पल रहा बच्चा किसका है और समाज व कानून से लड़ कर न्याय व सम्मान पाने की कोशिश करनी चाहिए. जिन निजी क्लिनिकों में गर्भपात कराने का खेल चल रहा है उसका भंडाफोड़ भी होना चाहिए.
तीन से पांच साल की हो सकती है कैद
गर्भपात करवाना व लिंग निर्धारण कर गर्भ में पल रहे शिशु की जानकारी देना कानून अपराध है. क्लब रोड के अधिवक्ता संजय कुमार सिंह ने बताया कि गर्भपात करानेवाले और सहयोग करनेवाले पूर्णत: दोषी है.
भारतीय दंड संहिता की धारा 312 के अंतर्गत उन्हें तीन वर्ष का कारावास या जुर्माना या दोनों किया जा सकता है. गर्भपात कराना दंडनीय अपराध है. लिंग निर्धारण करनेवाले भी दोषी है. प्री कंसेप्शन एंड प्री नेटल डायग्नोस्टिक टेक्निक एक्ट 1994 की धारा 23 व 25 के तहत तीन साल से पांच साल की सजा व 10 हजार से 50 हजार तक दंड के भागी बनेंगे.
की जायेगी कार्रवाई
लिंग निर्धारण कानून अपराध है. अगर लिंग निर्धारण की सूचना मिलती है तो अल्ट्रासाउंड संचालक व लिंग निर्धारण करनेवाले व्यक्ति पर कार्रवाई की जायेगी.
डाॅ आरपी सिंह, सिविल सर्जन
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