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साहित्य की गलियां फिर होने लगीं गुलजार

कलाकारों व साहित्यकारों को मिला ‘चिराग ए अदब’ का साथ औरंगाबाद (सदर) : एक समय औरंगाबाद जिला साहित्यिक गतिविधियों से गुलजार रहा करता था. यहां की हर शाम सांस्कृतिक कार्यक्रमों की गवाह बना करती थी. कभी रंग मंच तो कभी कविता व मुशायरे का दौर चलता था, लेकिन ये सिलसिला धीरे-धीरे बेहद कमजोर पड़ने लगा. […]

कलाकारों व साहित्यकारों को मिला ‘चिराग ए अदब’ का साथ
औरंगाबाद (सदर) : एक समय औरंगाबाद जिला साहित्यिक गतिविधियों से गुलजार रहा करता था. यहां की हर शाम सांस्कृतिक कार्यक्रमों की गवाह बना करती थी. कभी रंग मंच तो कभी कविता व मुशायरे का दौर चलता था, लेकिन ये सिलसिला धीरे-धीरे बेहद कमजोर पड़ने लगा.
ऐसी स्थिति भी बन आयी कि लोग कलाकारों व साहित्यकारों को भुलते जा रहे थे. पर, इस संकट को और भी ज्यादा गहरा होने से पहले ही किसी ने इसे थाम लिया. शहर के ‘चिराग ए आदब’ संस्था के प्रयास से आज एक बार फिर साहित्य की गलियां रोशन होने लगी है. शेरी नशिस्त जिसे हिंदी में कवि गोष्ठी कहते हैं, जैसे कार्यक्रम की शुरुआत कर इस संस्था ने एक बार फिर से जिले में साहित्य का माहौल खड़ा कर दिया. चिराग ए अदब साहित्यिक संस्था अब हर माह कवि गोष्ठी कर साहित्यिक गतिविधियों को पुर्नजीवित करने का प्रयास कर रही है. ये संस्था कार्यक्रम के लिए किसी जगह का मोहताज नहीं है.
हर बार किसी साहित्य प्रेमी के घर का चयन कर कवि गोष्ठी आयोजित किया जाता है. हाल ही में शहर के साहित्य प्रेमी रोज मोहम्मद अंसारी, अप्सरा जयाउद्दीन अंसारी, ऑक्सफोर्ड कोचिंग चलानेवाले नूर आलम सिद्दकी के घर कवि गोष्ठी का आयोजन चिराग ए अदब कर चुकी है. संस्था के अध्यक्ष इकबाल अख्तर दिल ने बताया कि इससे पहले कई बड़े समारोह भी संस्था द्वारा आयोजित किये जा चुके हैं, जिसमें राष्ट्रीय स्तर के कवि व शायर शामिल रहे हैं. वे बताते हैं कि शेरी नशिस्त कार्यक्रम को चार चांद लगाने के लिए बाहर से आये कवियों को भी कार्यक्रम में शामिल कर लिया जाता है. उनके सम्मान में आयोजित कवि गोष्ठी एक बेमिशाल कार्यक्रम होता है.
अभी तक इस कार्यक्रम में बाहर से आये विख्यात कवि राहिब बस्तवी, उत्तर प्रदेश के जमील खैराबादी, तस्लीम मुर्तजा रहमानी शामिल हुए हैं, जिन्होंने अपने मशहूर रचनाओं को लोगों के समक्ष रखा है. राहिब साहब द्वारा महफील में पढ़ी गयी कविता ‘उधर खतनूमा की दुआ हो न पाये, इधर हादसे रूख बदलने लगे’ और जमील साहब की लिखी कविता ‘बहुत बुलंद फिजा में तेरी पतंग सही, मगर ये सोच कभी डोर किसके हाथ में है’ काफी सराही गयी है. संस्था के सचिव रंगकर्मी अफताब राणा बताते हैं कि इस कार्यक्रम के शुरू करने से स्थानीय कवियों को अपनी रचना को रखने का एक मौका मिल रहा है. पहले उन्हें अपनी रचनाओं को अभिव्यक्त करने के लिए सोचना पड़ता था, पर अब शेरे नशिस्त के जरिये वे अपनी अभिव्यक्तियों को खुल कर रख रहे हैं.
शामिल होनेवाले स्थानीय कवि : जब इस कार्यक्रम की परंपरा शुरू की गयी तो पहले बहुत कम लोग इक्ट्ठा हुऐ. पर अब कवियों की काफी अच्छी संख्या होने लगी है और श्रोता भी जुटने लगे हैं.
कार्यक्रम में स्थानीय कवि में फिरोज अख्तर फिरोज, सावन औरंगाबादी, आफताब राणा, इकबाल अख्तर दिल, अनूप सिन्हा, गुलफाम सिद्दकी, युसुफ जमील, जमील रागिब, शाहीद खान, कलिम राहत, ज्याउल मुस्तफा खां, संस्था के कनवेनर जुलफेकार अली भुट्टो शामिल हो रहे हैं.

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