।। सुधीर कुमार सिन्हा ।।
अंधविश्वास व आस्था का दिख रहा अनूठा संगम
औरंगाबाद : कुटुंबा–नवीनगर मुख्य मार्ग से दक्षिण दिशा की ओर लगभग डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर एक मंदिर है, जिसके सामने बैठे सैकड़ों महिलाएं झूम रही हैं. कुछ महिलाएं रो रही हैं, तो कुछ उठ–उठ कर गिर रही हैं, तो कुछ हंस रही है और कुछ गीत गा रही हैं.
इन महिलाओं को कोई होश नहीं है कि वे भारी भीड़ के बीच क्या कर रही हैं. उन्हें अपने कपड़ों की स्थिति का भी भान नहीं है. ऐसा लगता है कि ये महिलाओं अपने वश में नहीं हैं, उन्हें कोई और नियंत्रित कर रहा है. यह अविश्वसनीय और अद्भुत नजारा महुआधाम मेले का है.
ऐसी मान्यता है कि यहां प्रेत बाधा से लेकर कैंसर तक का इलाज संभव है. इस मेले में अंधविश्वास व आस्था का अनूठा संगम देखने को मिलता है. यहां साल में दो बार वासंतीय व शारदीय नवरात्र पर मेला का आयोजन होता है. वैसे तो सालों भर भक्त यहां आते हैं, पर इन दोनों मौकों पर दूर–दूर के लोग, यहां तक कि अन्य जिलों व राज्यों से भी लोग पहुंचते हैं.
उन्हें देख कर यह सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है. इस आधुनिक युग के लोगों पर भी अंधविश्वास हावी है. यहां ज्यादातर महिला भक्त ही पहुंचते हैं. यहां की पूजा पद्धति भी अलग है. सुबह स्नान करने के बाद पूजा की एक डलिया में पान का पत्ता, कसैली व नारियल लेकर भक्त मंदिर पहुंचते हैं. भक्तों के नाम लिखे हुए ये डलिये स्थायी रूप से स्थापित मां दुर्गा के मंदिर में चले जाते हैं.
मंदिर के बाहर भक्त बैठ कर मां का ध्यान लगाते हैं. अंदर पूजा शुरू होती है और फिर इस क्रम में शुरू होता है झूमने, चीखने व चिल्लाने का दौर. अन्य राज्यों एवं जिलों से पहुंचने लोगों में इस स्थल के प्रति गहरी आस्था है. वे यहां आते हैं और नवरात्र के मौके पर पूरे नौ दिन तंबू लगा कर खुले आसमान के नीचे रहते है, जो काफी कष्टदायक होता है.
बाहर से आनेवाले लोग इस स्थल के प्रति आस्था व्यक्त करते हुए कहते हैं कि कहीं फायदा नहीं हुआ, पर यहां आने के बाद वे अपनी बीमारी से कुछ राहत महसूस कर रहे हैं. झारखंड के अलावा सासाराम और रोहतास से आनेवाले अधिकतर लोग प्रेत बाधा की बात बताते हैं. लेकिन, आसपास की लोगों की सोच इसके विपरीत है. वे इसे अंधविश्वास मानते हैं. यही कारण है कि इतनी भीड़ के बाद भी आसपास के लोग कम ही पूजा करने आते हैं.