नवीनगर
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शुरू हुआ दावेदारी का दौर
नवीनगर नवीनगर विधानसभा सीट पर अभी जदयू का कब्जा है. विधायक वीरेंद्र सिंह यहां से पहले भी विधायक रह चुके हैं. इस बार भी वह अपने लिए संभावनाएं देख रहे हैं. हालांकि, जदयू का उम्मीदवार यहां से वही होंगे या कोई और, अभी तय नहीं हो सका है. वैसे सामाजिक समीकरणों के लिहाज से क्षेत्र […]
नवीनगर विधानसभा सीट पर अभी जदयू का कब्जा है. विधायक वीरेंद्र सिंह यहां से पहले भी विधायक रह चुके हैं. इस बार भी वह अपने लिए संभावनाएं देख रहे हैं. हालांकि, जदयू का उम्मीदवार यहां से वही होंगे या कोई और, अभी तय नहीं हो सका है. वैसे सामाजिक समीकरणों के लिहाज से क्षेत्र में राजद अपने को अधिक ताकतवर बताता है. कहने के लिए तो इस क्षेत्र में राजपूत मत निर्णायक कहलाते हैं, लेकिन यादव व अल्पसंख्यक जब भी एकजुट हुए, परिणाम राजद के पक्ष में गया. शायद इसी कारण से दो बार राजद से विधायक रह चुके भीम कुमार इस बार भी यहां से लड़ने के दावे पेश कर रहे हैं. उधर, लोजपा से विधायक रह चुके विजय कुमार सिंह उर्फ डब्ल्यू सिंह अपने ममेरे भाई नवीन सिंह की हत्या के मामले में जमानत पाकर जेल से बाहर आते ही सक्रिय हो गये हैं. जहां तक एनडीए का सवाल है, उस खेमे में भाजपा मान रही है कि इस बार इस सीट पर उसी का दावा बनता है.
कई भाजपाई अभी से ही उम्मीदवारी की आस में कतार लगा कर खड़े हैं.
अब तक
लोजपा से विधायक रह चुके डब्ल्यू सिंह जेल में हैं. ऐसे में उनकी पत्नी सामने आ चुकी हैं. बाकी पार्टियों के नेता अभी हवा का रुख भांपने में लगे हैं.
इन दिनों
जदयू कार्यकर्ता सक्रियता से घर-घर दस्तक दे रहे हैं. भाजपाई भी सभी स्तर पर कार्यकर्ताओं की बैठकें कर रहे हैं. बैठकें हो रहीं.
सीट को लेकर असमंजस
रफीगंज
रफीगंज विधानसभा क्षेत्र लंबे समय से राष्ट्रीय जनता दल का गढ़ रहा है, पर 2010 के विस चुनाव में जदयू प्रत्याशी अशोक कुमार सिंह ने एनडीए के लिए यह सीट जीती थी. वैसे, बदले हुए राजनीतिक माहौल में इस बार महागंठबंधन में कौन दल यह सीट पायेगा, यह कहना फिलहाल मुश्किल है, पर सत्तारूढ़ जदयू को यह सीट मिलने की स्थिति में सीटिंग एमएलए को ही टिकट मिलने की संभावना ज्यादा प्रबल दिख रही है. दूसरी तरफ, विपक्षी भाजपा ने भी इस क्षेत्र में इस बार जोरदार एंट्री की तैयारी कर रखी है. पार्टी के एक नेता प्रमोद सिंह पिछले दो साल से यहां अपनी राजनीतिक जमीन तैयार करने में जुटे हुए हैं. भाजपा यहां पहली ही बार भाग्य आजमाने की सोच रही है. इसे लेकर भाजपा के कार्यकर्ताओं में उत्साह भी कम नहीं है. बहुत हद तक स्पष्ट है कि चुनाव में यहां मुख्य टक्कर एनडीए और सत्तारूढ़ गंठबंधन के उम्मीदवारों के बीच ही होगी. गंठबंधन की राजनीति में फिलवक्त सीटों के बटवारे पर सब की नजर टिकी हुई है.
अब तक
अन्य दलों में फिलहाल स्थिरता दिख रही है, जबकि भाजपा और महागंठबंधन में सीटों के बंटवारे के बाद ही चुनावी तसवीर साफ होगी.
इन दिनों
जदयू का हर घर दस्तक कार्यक्रम चल रहा है.पार्टी नेता कार्यक्रमों को सफल बनाने में जुटे हंै. भाजपा के कार्यकर्ताओं की सक्रियता बढ़ी.
बसपा प्रचार में, बाकी इंतजार में
औरंगाबाद
औरंगाबाद सीट पर फिलहाल भाजपा का कब्जा है. मौजूदा विधायक रामाधार सिंह तीन बार चुनाव जीत चुके हैं. एक बार फिर से वह तैयारी में जुट गये दिख रहे हैं. जगह-जगह बैठकों में सक्रिय भागीदारी कर रहे हैं. भाजपा के दूसरे नेता-कार्यकर्ता भी अब अपनी सक्रियता बढ़ाते नजर आ रहे हैं. उधर, महागंठबंधन में शामिल राजद, जदयू व कांग्रेस में किसे यहां चुनाव लड़ने का अवसर मिलेगा, अभी तय नहीं है. उम्मीदवारी के बाबत तसवीर साफ नहीं होने से यहां महागंठबंधन में शामिल दलों के नेता-कार्यकर्ता अपना स्टैंड नहीं ले पा रहे हैं. चर्चा है कि यह सीट कांग्रेस को मिल तो सकती है, पर शर्त के साथ. शर्त यह कि कांग्रेस जीताऊ उम्मीदवार दिखाये, तो सीट उसे मिले. उधर, इस सीट के लिए बसपा ने अपने उम्मीदवार की घोषणा काफी पहले ही कर दी है. बसपा उम्मीदवार कौशल कुमार सिंह पहले से ही प्रचार में जुट भी चुके हैं. पिछली बार के विधानसभा चुनाव में करीब 14 हजार वोटों के साथ वह तीसरे नंबर पर रहे थे. इससे इस बार के चुनाव को लेकर वह उत्साहित दिख रहे हैं.
अब तक
भाजपा के एक गुट ने एक युवा व्यवसायी को सामने ला दिया है. महागंठबंधन में किसे सीट मिलेगा, यह तय होना बाकी है.
इन दिनों
जदयू घर-घर दस्तक कार्यक्रम में व्यस्त है, तो भाजपा के नेता-कार्यकर्ता भी जनसंपर्क अभियान में जुटे हैं. कांग्रेस भी पीछे नहीं है.
दावेदारी के लिए सब सक्रिय
कुटुंबा (अजा)
कुटुंबा विधानसभा सीट सुरक्षित है. यहां से वर्तमान में जदयू के ललन भुइयां विधायक हैं. पिछले तीन चुनाव से इस सीट पर जदयू का ही कब्जा रहा है. इस बार भी ललन भुइंया को जदयू की तरफ से प्रत्याशी माना जा रहा है. दूसरी तरफ राजद के पूर्व विधायक सुरेश पासवान पाला बदल कर भाजपा में शामिल हो गये हैं. ये पूर्व में राजद सरकार में पर्यटन मंत्री रह चुके हैं. भाजपा में आने के बाद प्रत्याशी बनने के लिए दौड़ में शामिल हैं. भाजपा के दूसरे नेताओं की इन्होंने दिक्कत बढ़ा दी है. यहां से कांग्रेस भी अपनी दावेदारी पेश करती दिख रही है. पूर्व मंत्री दिलकेश्वर राम के पुत्र राजेश कुमार दो बार े चुनाव में उम्मीदवार रहे हैं और इस बार भी दावेदारी पेश करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं. अन्य दलों का यहां कोई खास जनाधार नहीं है. वैसे, महागंठबंधन पर यहां सबकी निगाहें टिकी हैं. यहां से जदयू के साथ-साथ राजद भी अपना प्रत्याशी चाहता है.पर, सीटिंग विधायक होने के चलते जदयू का पलड़ा भारी लग रहा है. वैसे, राजद ने अपनी दावेदारी मजबूत करने के लिए गतिविधियां बढ़ा दी है.
अब तक
राजद के विधायक व मंत्री रहे सुरेश पासवान ने पाला बदल लिया है. अब वह भाजपा में हैं. उम्मीदवारी की दौड़ में भी शामिल हैं. कांग्रेस भी दावेदार
इन दिनों
जदयू ने घर-घर दस्तक कार्यक्रम चलाया है, तो भाजपा व कांग्रेस नेता-कार्यकर्ता भी आये दिन बैठकें कर जनसंपर्क कर रहे हैं.
उम्मीदवारी के लिए मारामारी
गोह
विधानसभा की गोह सीट पर पिछले तीन बार से जदयू का कब्जा रहा है. बार-बार राजद को पटखनी देकर डॉ रणविजय सिंह चुने जाते रहे हैं. इस बार भी डॉ रणविजय पूरे दमखम के साथ जदयू की कमान संभाले हुए हैं. जदयू के साथ गंठबंधन के बावजूद दो बार राजद के प्रत्याशी रहे रामअयोध्या प्रसाद भी अपनी मजबूत दावेदारी पेश कर रहे है. उधर, भाजपा को अभी तक गोह में लड़ने का मौका नहीं मिला है. इस बार इसकेनेता-कार्यकर्ता, दोनों लड़ने की होड़ में हैं. क्योंकि, उनका न तो सीटिंग विधायक है और ना ही उम्मीदवार, जो आजमाया हुआ हो. हाल में जदयू छोड़ भाजपा में आकर जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं के एक वर्ग का विरोध ङोल रहे ई अवधेश सिंह समेत करीब आधे दर्जन से अधिक दावेदार हैं. कांग्रेस का भी संगठन यहां ठीक है. वरिष्ठ नेता कौकब कादरी दो बार यहां से लड़ चुके हैं. पर, जदयू से करीब होने के चलते पार्टी फिलहाल यहां अकेले दम अपने रास्ते तय करने की स्थिति में नहीं है.
अब तक
जदयू नेता ई अवधेश सिंह अब भाजपा में शामिल. राजद के रामअयोध्या प्रसाद भी कर रहे हैं दावा. इस से रोचक नजारा बन गया है.
इन दिनों
जदयू ने घर-घर दस्तक कार्यक्रम चलाया है, तो भाजपा ने भी कार्यकर्ता सम्मेलन किया है. बाकी दलों में भी सुगबुगाहट है, पर वैसी तेजी नहीं.
बिना विधायक का है क्षेत्र
ओबरा
2010 के विधानसभा चुनाव में ओबरा की स्थिति काफी दिलचस्प थी. तब निर्दलीय प्रत्याशी सोमप्रकाश सिंह ने बाजी मार कर सबको चौंका दिया था. पर, बाद में कोर्ट में उनके चुनाव को चुनौती दिये जाने पर उन्हें झटका खाना पड़ा. उनकी विधायकी चली गयी. यानी लंबे समय से ओबरा विधानसभा क्षेत्र बिना विधायक का है. ओबरा विधानसभा क्षेत्र का लंबे समय तक राम विलास सिंह ने प्रतिनिधित्व किया था. भाकपा माले के राजाराम सिंह 1995 व 2000 में दो टर्म विधायक रहे.इसके बाद यह सीट फिर राजद के खाते में चली गयी थी. पहले यह क्षेत्र औरंगाबाद संसदीय क्षेत्र में था. अब यह काराकाट लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है. जद यू ने यहां पूरा जोर लगा रखा है. राजग की ओर से भाजपा और रालोसपा का दावा है. मुख्यमंत्री की दो-दो सभाएं दाउदनगर में हुई हैं. सोन नदी पर बनने वाले पुल को जदयू एक बड़ी उपलब्धि मान रहा है.
अब तक
सीटिंग एमएलए निर्दलीय लड़ेंगे या किसी और दल में जायेंगे, स्पष्ट नहीं है. राजद के पूर्व विधायक पाला बदल भाजपा में जा चुके हैं.
इन दिनों
जदयू बड़े पैमाने पर घर-घर दस्तक कार्यक्रम चला चुका है. भाजपा में अभी वैसे तेजी नहीं है. बस, जहां-तहां छोटी-मोटी बैठकें ही हो रही हैं.
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