औरंगाबाद (ग्रामीण): आगामी विधानसभा चुनाव में करीब तीन माह का समय है, लेकिन इसकी तैयारी प्रशासन व राजनीतिक दलों द्वारा अभी से ही शुरू कर दी गयी है. खुद को संभावित उम्मीदवार बताने वाले नेता जनता की नब्ज टटोलने में लग गये हैं. वहीं, नेताओं के दौरे व उनकी संभावित दावेदारी ने आम जनता को भी कुछ हासिल करने का एक मौका दे दिया है.
अभी महागंठबंधन की तसवीर साफ भी नहीं हुई है कि जदयू, कांग्रेस व राजद एक साथ गंठबंधन में चुनाव लड़ेगी या मैत्री गंठबंधन होगा. इसका जवाब अभी इन दलों नेताओं के पास नहीं है, लेकिन महागंठबंधन मान कर ही अपनी दावेदारी को जनता के समक्ष रख रहे हैं. केंद्र व राज्य प्रायोजित योजनाओं की जानकारी नेताओं ने जुटा कर इसे अपनी मेहनत का फल बता रहे हैं.
गांव या शहर में अगर एक चापाकल या बिजली ट्रांसफॉर्मर बदला जा रहा है, तो नेता जनता को अपनी मेहनत बता रहे हैं. जनता को क्या पता कि चुनाव में उनका कौन उम्मीदवार होगा, लेकिन उन्हें भी हां में हां मिलाना आता है. गांवों की समस्याओं के समाधान का प्रयास भी नेताओं ने शुरू कर दिया है. अब यह अलग बात है कि चुनाव के पहले वे कितना कारगर साबित हो सकते हैं. औरंगाबाद के सभी छह विधानसभा क्षेत्रों में जन समस्याओं को उठाने का दौर भी शुरू हो गया है. शिक्षकों की समस्या हो या स्वास्थ्यकर्मियों की. टोला सेवकों की समस्या हो या आंगनबाड़ी सेविकाओं की. रसोइया की हो या सफाईकर्मियों की. हर संगठन की समस्याओं के समाधान के लिए संभावित उम्मीदवार उनके साथ हो चले हैं. ये अलग बात है कि समस्याओं का समाधान हो या न हो, लेकिन अपनी उपस्थिति जता कर नेता अपनी दावेदारी मजबूत करना चाहते हैं. रफीगंज, नवीनगर व कुटुंबा विधानसभा क्षेत्र में एमएलए के दावेदारों की भीड़ लग गयी है, चाहे वह एनडीए से उम्मीदवार बनना चाहते हो या संभावित महागंठबंधन से. एक -एक सीट पर कोई लोजपा से अपनी दावेदारी बता रहा है तो कोई भाजपा व रालोसपा से. उधर, जिस सीट पर राजद की दावेदारी हो रही है, उसी सीट पर जदयू व कांग्रेस से भी. यानी की अभी दावेदार नेताओं को यह भी पता नहीं कि सीट किस पार्टी के पाले में जायेगी.
रफीगंज, नवीनगर विधानसभा क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी से टिकट लेने वालों की लंबी कतार है. कोई तीन वर्ष पूर्व से ही अपनी दावेदारी जता रहा है, तो कोई अभी अपनी दावेदारी सुनिश्चित कर मैदान में कूद गया है. घोषणाओं की झड़ी लग रही है. सड़क, बिजली, पेयजल समाधान के लिए प्रयास भी शुरू कर दिये गये हैं. औरंगाबाद जिले के कुटुंबा, नवीनगर, औरंगाबाद, रफीगंज प्रखंड में सबसे बड़ी समस्या सिंचाई की है. सुखाड़ की मार ङोल रहे जिले में सिंचाई सबसे बड़ा मुद्दा है, जिसका समाधान करने में अभी तक कोई भी नेता सफल नहीं हो सका है. घोषणाओं की झड़ी तो कई बार लगी, लेकिन उसपर अमल शून्य ही है.
आम जनता को हर बार एक इंतजार होता है कि शायद इस बार उनकी सुन ली जाये, लेकिन चुनाव खत्म होते ही उनका इंतजार एक बार फिर अगले चुनाव पर टिक जाता है. नवीनगर विधानसभा क्षेत्र के ग्रामीण इलाके में अपने आप को अभी से ही उम्मीदवार बताने वाले नेताओं ने दौड़ लगानी शुरू कर दी है. एक -एक नेता एक दिन में चार से पांच गांवों का दौरा कर रहे हैं. उनका टारगेट हर गांव को चुनावी बिगुल बजने के पहले छू लेना है. नेताओं के कार्यकर्ता भी उनका साथ दे रहे हैं.
हमारी नैया पार लगा दीजिए: विधानसभा के पहले विधान परिषद का चुनाव है, विधान परिषद के प्रत्याशी अपना सब कुछ लगा चुके हैं, लेकिन जो विधानसभा चुनाव में अपना किस्मत अजमाना चाहते हैं, उन्हें इस चुनाव से कोई मतलब नहीं है. अपने आप को प्रत्याशी बता रहे उम्मीदवार जनता के नब्ज टटोलते-टटोलते अखबार के कार्यालयों में भी पहुंच रहे हैं. एक ऐसे ही उम्मीदवार से सामना हुआ तो उन्होंने कहा कि बस कुछ दिन बचा है, अपने अखबार के जरिये हमारी नैया पार लगा दीजिए. जब अखबार में नाम आयेगा, तो जनता के सामने हमारा व्यक्तित्व जायेगा. रुपये- पैसे की चिंता नहीं है.
ट्रांसफॉर्मर पर दिया जा रहा अधिक ध्यान
जिस गांव में ट्रांसफॉर्मर जला है या ट्रांसफॉर्मर नहीं है, उसका बनाने व बदलने की कार्रवाई शुरू कर दी गयी है. किसी तरह अपनी पहुंच लगा कर ट्रांसफॉर्मर लगा भी दिया जा रहा है. भले ही उसमें नेताजी का पैसा ही क्यों न खर्च हो. लगाने से लेकर नारियल फोड़ने तक नेताजी जनता के बीच रह रहे हैं. कई गांव ऐसे हैं, जहां ट्रांसफॉर्मर बदले तो गये, लेकिन महीने बाद भी चालू नहीं हुआ. जब जनता नेताजी से शिकायत करने पहुंची तो नेताजी 10-12 जगहों पर फोन घुमा दिये और जल्द ट्रांसफॉर्मर चालू कराने का आश्वासन देकर पीछा छुड़ा लिये. नवीनगर व कुटुंबा विधानसभा क्षेत्र में कुछ गांव ऐसे भी है, जहां ट्रांसफॉर्मर तो दिये गये, लेकिन लगने से दूसरे दिन ही खराब हो गये. जहां सौ केवीए का ट्रांसफॉर्मर चाहिए, वहां 63 केवीए का भेज दिया गया. अब इसमें नेताजी गलती अपनी नहीं मान कर बिजली विभाग पर दोष मढ़ते हैं, लेकिन जनता अभी भी इस ट्रांसफॉर्मर से खुश नहीं है. चुनाव में अभी तीन माह बाकी है, ऐसे में नेताजी की मेहनत टिकट मिलने के बाद ही सफल होगी, वह भी कोई गारंटी नहीं है. क्योंकि टिकट लेने में उनके पसीने भी छूट सकते हैं. इसके पीछे सबसे बड़ा कारण है अन्य नेताओं की दावेदारी. अब बात जो हो जनता जो चीज को पांच साल में हासिल नहीं कर पाये, उसे हासिल करने का समय यही तीन माह है. कौन पार्टी से कौन उम्मीदवार होता है और जनता किस पर अपना भरोसा जताती है, यह वक्त ही बतायेगा.