मदनपुर (औरंगाबाद) : मगही पान की खुबियां पर फिल्मों में भी गीत गाये है, जो जवां मर्द की जुबां पर गुनगुनाया करते थे. ‘लाली लाली होठवां से बरसे ला ललाई हो, की रस चुअला.’ मगध के मगही पान की शान गया, लखनऊ एवं बनारस की मंडियों में देखे जाते हैं. मगही पान की कद्रदान बनारस के मगही पान दुकान पर पान खाने के लिये घंटों अपनी बारी का इंतजार करते हैं.
तभी तो इस सदी के महानायक अमिताभ बच्चन ने भी मगही पान की शान में यह गीत गया था ‘खा के पान बनारस वाला, खुल जाये बंद अकल का ताला’ लेकिन आज इन मगही पानी उत्पादकों का हाल बेहाल है. मदनपुर प्रखंड के बरई बिगहा निवासी भीम चौरसिया, प्रेम चौरसिया, अवधेश चौरसिया से पूछे जाने पर बताया कि बढ़ती महंगाई में मगही पान के कद्रदानों की संख्या में कमी आयी है. एक सिक पान की कीमत स्थानीय बाजारों में लगभग पांच रुपये होती है.
वही लखनऊ एवं बनारस में 25 रुपये में मिलता है. लोग पान की जगह सस्ते गुटखे एक -दो रुपये में खा कर काम चला लेते है. उन्होंने आगे बताया कि चार कट्ठा में पान की खेती करने में करीब डेढ़ लाख रुपये पूंजी की जरूरत होती है. मजदूरी, बांस, सरका, सुतली, पान का बीज, तीसी, सरसों की खली, दवा व डीजल आदि के मूल्यों में हुई अधिक वृद्धि के कारण पान उत्पादन में लागत अधिक लगते हैं. वहीं कभी अधिक वर्षा, अधिक ठंड, ओला, कीट के प्रकोप से पान उत्पादकों की पूंजी डूब जाती है. सरकारी स्तर पर न तो पान की बीमा हो पाती है और नहीं उत्पादकों को आसान किस्तों पर कर्ज ही मिल पाती है. ऐसे में पान उत्पादन में लागत अधिक लगने से लोगों के होठों से पान की लाली समाप्त हो चुकी है.