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निखिल के त्याग को मतदाताओं ने नकारा

सुधीर कुमार सिन्हा, औरंगाबाद : बागी, दागी और त्यागी. ये वही शब्द हैं जो लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेसी नेताओं के जुबान पर जुमले की तरह चढ़ा हुआ था. क्षेत्र भ्रमण और लगभग हर कार्यक्रम में कांग्रेसी नेता जनता से इसी बात (बागी, दागी व त्यागी) का हवाला देकर वोट मांग रहे थे. ये शब्द […]

सुधीर कुमार सिन्हा,

औरंगाबाद : बागी, दागी और त्यागी. ये वही शब्द हैं जो लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेसी नेताओं के जुबान पर जुमले की तरह चढ़ा हुआ था. क्षेत्र भ्रमण और लगभग हर कार्यक्रम में कांग्रेसी नेता जनता से इसी बात (बागी, दागी व त्यागी) का हवाला देकर वोट मांग रहे थे. ये शब्द लोकसभा चुनाव के उन प्रत्याशियों के बारे में कहे गये थे, जिनमें टक्कर माना जा रहा था. यानी कि जदयू प्रत्याशी बागी कुमार वर्मा को ‘बागी’, भाजपा प्रत्याशी सुशील कुमार सिंह को ‘दागी’ और कांग्रेस प्रत्याशी निखिल कुमार को ‘त्यागी’ की संज्ञा दी गयी.

जदयू छोड़ कर भाजपा में शामिल होने के कारण सुशील कुमार सिंह को दागी प्रत्याशी और राज्यपाल जैसे गौरवान्वित पद से इस्तीफा देकर जनता की सेवा करने के उद्देश्य से चुनाव लड़ने वाले कांग्रेस प्रत्याशी निखिल कुमार को त्यागी होने के रूप में चुनाव के दौरान पेश किया गया. इसके बावजूद आखिर त्यागी कांग्रेस प्रत्याशी निखिल कुमार के त्याग को जनता ने क्यों नकार दिया? क्या यह बात जनता के पल्ले नहीं पड़ी? जैसे कई अहम सवाल भी खड़े हो गये.

इस लोकसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी निखिल कुमार को भाजपा प्रत्याशी सुशील ने करारी शिकस्त दी, जिस पर वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं एवं कार्यकर्ताओं ने मंथन भी किया. जबकि इस लोकसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी की जीत सुनिश्चित मानी जा रही थी. इसके पीछे शायद राजद के तालमेल में चुनाव लड़ना था और राजद के जनाधार के वोट बैंक को आधार मान कर इनकी जीत देखी जा रही थी. पर जनता ने कांग्रेस प्रत्याशी का साथ नहीं दिया और उन्हें एक बार फिर हार का सामना करना पड़ा. पिछले लोकसभा चुनाव में भी निखिल कुमार कांग्रेस के प्रत्याशी थे. उस समय कांग्रेस अकेले चुनाव लड़ी थी, जिसमें निखिल कुमार हार गये थे. राजद भी गत लोकसभा चुनाव में अकेले चुनाव लड़ा था, जिसके प्रत्याशी शकील अहमद खां थे. शकील अहमद खां भी पराजित हो गये थे और वे दूसरे नंबर पर थे.

पर इस बार शकील अहमद खां को पिछले चुनाव में मिले वोट और निखिल कुमार को मिले वोट को जोड़ कर जीत का दावा पेश किया जा रहा था. साथ ही इस लोकसभा चुनाव में राज्यपाल पद का त्याग करते हुए चुनाव लड़ने के कारण जीत मिलने की अपेक्षा अधिक व्यक्त की जा रही थी. लेकिन, जनता ने कांग्रेस प्रत्याशी के त्याग को नहीं समझा और उन्हें नकार दिया. इसके पीछे चाहे भावी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लहर कारण रहा हो या फिर कांग्रेस सरकार से जनता को त्रस्त होने की वजह.

पर वास्तविकता यही है कि इसका असर औरंगाबाद संसदीय क्षेत्र पर भी पड़ा और भाजपा को जीत मिली तो कांग्रेस को हार का मुंह देखना पड़ा. हालांकि कांग्रेसी नेता भी नरेंद्र मोदी की लहर को ही मुख्य वजह मानते हैं. चुनाव में मिली पराजय को स्वीकार करते हुए प्रदेश प्रवक्ता राकेश कुमार उर्फ पप्पू सहित अन्य कांग्रेसी नेताओं ने कहा था कि नरेंद्र मोदी की लहर पूरे देश में चली, जिसका पूरा असर औरंगाबाद पर भी पड़ा. उनलोगों ने जो आकलन किया था, वह गलत साबित हो गया. जनाधार भाजपा के साथ है और जनता ने अपनी विश्वास भाजपा के प्रति जतायी है. कुछ कांग्रेसी नेता भीतरघात होने की भी आशंका जाहिर कर रहे हैं तो कुछ ने संतोष करते हुए कहा कि जो होना था, सो हो गया.

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