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रोज खपता है 200 किलो पॉलीथिन आखिर कैसे होगा पर्यावरण में सुधार

लापरवाही. जागरूकता के बाद भी लोग धड़ल्ले से कर रहे पॉलीथिन का उपयोग दुकानदार बोले, पाॅलीथिन नहीं देने पर ग्रहक नहीं खरीदते हैं सामान औरंगाबाद शहर : महान वैज्ञानिक आइंस्टीन ने कहा था कि दो चीजें असीमित हैं, एक ब्रह्मांड तथा दूसरी मानव की मूर्खता. मानव ने अपनी मूर्खता के कारण अनेक समस्याएं पैदा कर […]

लापरवाही. जागरूकता के बाद भी लोग धड़ल्ले से कर रहे पॉलीथिन का उपयोग

दुकानदार बोले, पाॅलीथिन नहीं देने पर ग्रहक नहीं खरीदते हैं सामान
औरंगाबाद शहर : महान वैज्ञानिक आइंस्टीन ने कहा था कि दो चीजें असीमित हैं, एक ब्रह्मांड तथा दूसरी मानव की मूर्खता. मानव ने अपनी मूर्खता के कारण अनेक समस्याएं पैदा कर रखी हैं, जिसमें पर्यावरण असंतुलन बड़ी समस्या है. पर्यावरण किसी एक व्यक्ति से नहीं, बल्कि पूरी मानव सभ्यता से जुड़ी हुई है. जिस रफ्तार से पर्यावरण दूषित हो रहा है .अगर मानव जागृत नहीं हुए तो बड़ी नुकसान को भी झेलना पड़ सकता है. औरंगाबाद जैसे छोटे शहर में प्रतिदिन करीब 200 किलो पॉलीथिन का या इससे बने सामान की खपत हो जा रही है. उपयोग होने के बाद ये मिट्टी को प्रदूषित कर रहा है. इधर, लगन में मौसम में प्लास्टिक के पत्तल, ग्लास, प्लेट आदि का 10 गुना खपत बढ़ गया है. ये सभी धरती के लिए हानिकारक है.
हमारी जिंदगी में पॉलीथिन का असर : बाजार आनेवाले करीब 70 प्रतिशत लोग अपने साथ बैग या थैला लेकर नहीं आते हैं. वे हर खरीद पर दुकानदार से पॉलीथिन की मांग करते हैं. पॉलीथिन में समान नहीं देने पर ऐसे दुकान से ये लोग समान नहीं खरीदते हैं. ऐसे में इन दुकानदारों को पॉलीथिन रखना मजबूरी हो जाता है. ग्राहक कई समान विभिन्न दुकानों से समान खरीदते तो सभी हर जगह पॉलीथिन की मांग करते हैं. दरअसल, हमारे देश में पॉलीथिन व प्लास्टिक पैक में आनेवाले सामान की सूची भी इतनी लंबी है कि उसे गिन पाना शायद संभव नहीं है. खास तौर पर आम लोगों के दैनिक जीवन में प्रयोग होने वाली तमाम वस्तुएं ऐसी हैं, जो केवल प्लास्टिक या पॉलीथिन पैक में ही बाजार में उपलब्ध है. उदाहरण के तौर पर ब्रेड, दूध, दही, पनीर, प्लास्टिक बोतल, चिप्स, नमकीन, बिस्किट, गुटखा, साबुन, शैंपू, सीमेंट, यूरिया बैग आदि शामिल है.
ग्राहकों की जिद पर रखना पड़ता है पॉलीथिन : सियाराम शो रूम के मालिक खान इमरोज ने कहा कि पॉलीथिन पर्यावरण के लिए हानिकारक है. हम दुकानदारों को रखना पाॅलीथिन रखना मजबूरी बन जाता है. ग्राहक कोई भी समान खरीदते हैं तो पॉलीथिन में ही देना पड़ता है, नहीं देने पर समान खरीदने से इन्कार कर देते हैं. ग्राहक जागरूक हो जाये तो दुकानदार खुद पॉलीथिन देना बंद कर देंगे.
पॉलीथिन पर लगे रोक : अवकाशप्राप्त शिक्षक रामनंदन सिंह ने कहा कि प्लास्टिक और इससे बने सामान की खपत पर्यावरण के लिये उचित नहीं है. लोगों को जागरूक होने की जरूरत है. अगर सब्जी खरीदने जायें और पहले से ही साथ में थैला रखेंगे, तो पॉलीथिन की खपत कम होगी. कई शहरों में पॉलीथिन के उपयोग पर बैन लगा दिया गया है. यहां भी बैन लगा देना चाहिए.
कई रोगों को जन्म देता है पॉलीथिन
पॉलीथिन हमारे जीवन पर काफी असर डाल रहा है. चाय व पानी पीने के लिए भी हम प्लास्टिक का उपयोग कर रहे है. यह कैंसर जैसी खतरनाक बीमारियों को जन्म देता है. इससे होने वाले नुकसान तथा इसके दूरगामी परिणामों को खुद अच्छी तरह समझे तथा इनके समूल नाश का स्वयं पुख्ता उपाय ढूंढे. हमारी लापरवाही तथा अज्ञानता ही हमारे लिए पर्यावरण असंतुलन, बाढ़ बीमारी तथा अन्य प्रकार की कई तबाही का कारण बनती है. हमें खुद जागरूक होना होगा तथा ऐसी नकारात्मक परिस्थितियों से स्वयं ही जूझना होगा. जहां तक हो सके हम अपने घरों में ऐसे अनाशिय कचरों को एकत्रित कर उन्हें स्वयं समाप्त करे या रिसाइकिल होने हेतु उसे किसी कबाड़ी के दुकान तक पहुंचाने की उपाय करें.
डॉ अभय कुमार, प्रबंधक, देव अस्पताल

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