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पुनपुन में तर्पण के बाद गया रवाना हुए सैकड़ों पिंडदानी
देश के कोने-कोने से पिंडदान करने के लिए पहुंच रहे लाेग औरंगाबाद नगर : पुनपुन पिंडदानियों के लिए प्रथम द्वार माना जाता है. अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान करने की परंपरा पौराणिक काल से चली आ रही है. सर्वप्रथम पुनपुन नदी घाट पर पिंडदान तर्पण करने के बाद ही श्रद्धालु गया […]
देश के कोने-कोने से पिंडदान करने के लिए पहुंच रहे लाेग
औरंगाबाद नगर : पुनपुन पिंडदानियों के लिए प्रथम द्वार माना जाता है. अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान करने की परंपरा पौराणिक काल से चली आ रही है. सर्वप्रथम पुनपुन नदी घाट पर पिंडदान तर्पण करने के बाद ही श्रद्धालु गया स्थित फल्गु नदी के तट पर पिंडदान करते हैं.
पुनपुन नदी में तर्पण करने से दैहिक, दैविक और भौतिक तापों से मुक्ति मिल जाती है व आत्मा को शांति प्राप्त होती है. ऐसा लोगों का मानना है. गरुड़ पुराण में पिंडदानियों के लिए पुनपुन घाट पर तर्पण करने के महत्व वर्णित किया है.
पहले दिन सैकड़ों लोगों ने किया पिंडदान : मंगलवार को ही देश के कई राज्यों समेत नेपाल के श्रद्धालु पुनपुन नदी घाट पर अपने पितरों की मोक्ष की प्राप्ति के लिए तर्पण किया था. दूसरे दिन भी सैकड़ों श्रद्धालु पिंडदान करने के लिए पहुंचे.
पंडित कुंदन कुमार, राम बच्चन तिवारी ने बताया कि जब भगवान श्रीराम को 14 वर्ष का वनवास हुआ था व उस दौरान उनके पिता दशरथ की मौत हुई थी तो मोक्ष की प्राप्ति के लिए भगवान श्रीराम ने माता-पिता के साथ पुनपुन नदी में बालू के पिंडदान किया था, ताकि मोक्ष की प्राप्ति मिल सके.
पहले काफी संख्या में पिंडदानी श्रद्धालु पिंडदान करने के लिए पहुंचते थे ,लेकिन अब सुविधा के अभाव के कारण कम पिंडदानी यहां पर आते हैं व पिंडदान कर तुरंत गया के लिए रवाना हो जाते हैं. सुविधा बहाल करने के लिए स्थानीय सांसद, विधायक, प्रशासन के पदाधिकारियों से कहा गया, बावजूद किसी प्रकार की कोई सुविधा उपलब्ध नहीं करायी गयी.
ब्रिटिश शासन के दौरान यहां पर स्टेशन बनाया गया था .वही कोलकाता के मारवाड़ी सूरजमल सेठ द्वारा धर्मशाला का निर्माण कराया गया था, लेकिन प्रशासनिक उपेक्षा के कारण सब कुछ बर्बाद हो गया.
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