फाइल 1, अररिया की खबरें. ( प्रायोजित खबर- 300 कॉपी)चातुर्मास के दौरान जैन संतों के बीच रहकर नौ दिनों तक निर्जला व्रत रखकर पंकज मालू बने जैनियों के आदर्शआचार्य महाश्रमण के अज्ञानुव्रती संत मुनी श्री कमल कुमार ने कहा, बिहार प्रवास के दौरान ऐसे उपासक पहली बार देखने को मिलासंतों के बीच रहने के बाद जब घर पहुंचे पंकज तो जैन धर्मावलंबियों समेत अन्य लोगों की उनसे मिलने के लिए उमड़ी भीड़ फोटो:1-अपनी साधना के बाद घर पहुंचे विजय कुमार मालू फोटो:2- प्रवचन देते मुनि कमल कुमार प्रतिनिधि4 अररियाचातुर्मास के तहत अररिया के तेरापंथ भवन में गत दस जुलाई से आचार्य महाश्रमण के अज्ञानुवर्ती तपोमूर्ति व उग्रबिहारी संत मुनी श्री कमल कुमार जी का प्रवास चल रहा है. प्रवास के दौरान उनका तप, ध्यान, साधना व उपासना चल रहा है. इस कार्यक्रम को ले जिले के जैन धर्मावलंबियों में उत्साह है. उनके ध्यान व प्रवचन से प्रभावित होकर लोगों में जैन धर्म के प्रति भक्ति भावना जागृत हो उठा है. नतीजतन जहां सैकड़ों महिला व पुरुष उपवास रहकर 15 से लेकर 32 दिनों तक की साधना कर मन व शरीर को शांति पहुंचाने में तल्लीन हैं. इसी क्रम में मारवाड़ी पट्टी निवासी पंकज कुमार मालू पिता विजय कुमार मालू नौ दिनों तक 73 पहर का निर्जला व्रत रखकर जैन धर्मावलंबियों के बीच आस्था का केंद्र बन चुके हैं. इस दौरान वे जैन तेरापंथ के मुनियों के सानिध्य में रहे व उन्हीं के जैसा आचरण व व्यवहार अपनाया, जिसे देख कर मुनि श्री कमल कुमार जी काफी प्रभावित हुए. उन्होंने कहा कि ऐसा कठिन तप करने वाला सीमांचल में यह पहला व्यक्ति है. हालांकि पंकज कुमार मालू नौ दिनों के बाद घर तो पहुंच चुके हैं लेकिन अभी उनका उपवास अभी और तीन दिनों तक जारी रहेगा. जैन धर्मावलंबियों की मानें तो बिहार के अररिया जिले में इस बात का उतना व्यापक असर नहीं देखा गया लेकिन पंकज मालू के इस तपस्या की सूचना भारत ही नहीं विदेशों में भी फैल चुकी है. ज्ञानशाला संयोजक सह अनुव्रत समिति के सदस्य सचिन दुग्गड़, सभाध्यक्ष रुपचंद्र बड़डिया, पूर्व सभा अध्यक्ष सागरमल चिंडालिया, अनुव्रत समिति अध्यक्ष विजय सिंह नहाटा, भंवरलाल बोथरा, हनुमानमल चोड़ड़िया, संजय चिंडालिया, नवरतन दुग्गड़ आदि की माने तो 73 पहर के पौषद की सूचना पाकर पंकज मालू के परिजनों को देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी बधाईयां मिल रही है. इधर उपवास के बाद घर पहुंचे पंकज मालू ने अपने नौ दिनों के अनुभव के संबंध में बताया कि यह अनुभव अद्वितीय रहा. संतो का जीवन सब सुखों से दूर रहकर भी सर्वोत्तम जीवन है. जिसकी अनुभति उन्हें प्राप्त हुई है. उन्होंने बताया कि उन्हें दक्षिण भारत के कुछ राज्यों के अलावा अलावा अब तक लंदन व हॉगकांग से जैन धर्मवालंबियों के शुभकामना दूरभाष व इंटरनेट के माध्यम से उन तक पहुंचा है. 32 दिनों तक तप कर दिखाया धर्म के प्रति श्रद्धा इधर इस दौरान अनीता बेगवानी पति सोमकरण बेगवानी ने 32 दिनों की तपस्या की, जिसे जैनी मास खमण कहते हैं. श्री बेगवानी के द्वारा इससे पूर्व भी बड़े-बड़े तप किये गये हैं. इस संबंध में ज्ञानशाला संयोजक सचिन दुग्गड़ ने बताया कि गुरु द्वारा तपस्या करने के महत्व को बारीकी के साथ बताया जाता है जिससे प्रभावित होकर जैन धर्म हों या उससे जुड़े हुए अन्य लोग भी तप-साधना में शामिल होते हैं. उन्होंने बताया कि अनीता बेगवानी द्वारा पूर्व में 45, 41, 31, 18, 15, 13, 11 व आठ दिनों का तपस्या एवं बैले, तैले तो वेई दिये हैं. श्रीमती बेगवानी ने बताया कि तपस्या करने से उन्हें चित की शांति मिलती है व शरीर स्वस्थ रहता है और शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है. सत्संग से होता है पाप का अंत : मुनी श्री कमल कुमार जैन धर्म में चार्तुमास काल, ज्ञान, दर्शन, चरित्र व तप के लिए ही होता है. एक वर्ष के अवधि के दौरान आठ माह जैन संत परिभ्रमण करते हैं. चार माह एक स्थाल पर रहकर स्वयं भी साधना करते हैं और लोगों को भी साधना के लिए प्रेरित करते हैं. संत मुनि श्री कमल कुमार जी ने बताया कि जब तक सघन वर्षा नहीं होती है तब तक धरती का तप दूर नहीं होता है. इसी प्रकार जब तक सघन सत्संग नहीं होगा तब तक पाप भी दूर नहीं होता है. उन्होंने पंकज मालू के 73 पहर के पौषद के बारे में बताया कि यह अपने आप में कीर्तिमान है व इसे स्वर्णिम इतिहास कहा जा सकता है.
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