परेशानी. फल-फूल रहा है लाल खून का काला कारोबार
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ब्लड बैंक की नहीं है सुविधा
परेशानी. फल-फूल रहा है लाल खून का काला कारोबार जिले में अब तक ब्लड बैंक की स्थापना नहीं हो पायी है. रेडक्राॅस की इकाई में भी ब्लड बैंक नहीं खुल सका है. इससे इमरजेंसी में एक यूनिट रक्त के लिए मरीज के परिजनों को भारी कीमत चुकानी पड़ती है. इस अवैध कारोबार में संगठित नेटवर्क […]
जिले में अब तक ब्लड बैंक की स्थापना नहीं हो पायी है. रेडक्राॅस की इकाई में भी ब्लड बैंक नहीं खुल सका है. इससे इमरजेंसी में एक यूनिट रक्त के लिए मरीज के परिजनों को भारी कीमत चुकानी पड़ती है. इस अवैध कारोबार में संगठित नेटवर्क काम करता है.
अररिया : दावा है कि वर्ष 1990 में जिला बनने के बाद 26 सालों में जिले में विकास का गंगा बही. स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर भी ऐसे ही दावे किये जाते हैं.
जहां ये सही है कि सरकारी अस्पतालों में चिकित्सीय सुविधाएं पिछले सात आठ सालों में बहुत हद तक बेहतर हुई हैं. वहीं कुछ मूल भूत सुविधाओं का अभाव व फर्जी डाक्टरों के निजी क्लिनिकों व जांच घरों में ग्रामीण रोगियों के आर्थिक शोषण को लेकर जिला स्वास्थ्य विभाग का लापरवाह रवैया लोगों को हैरत में डाल रहा है. दूसरी तरफ ब्लड बैंक के अभाव के चलते लाल खून का काला कारोबार भी परवान चढ़ रहा है.
जानकारों की मानें तो इस अवैध कारोबार के पीछे एक संगठित नेटवर्क काम कर रहा है.
गौरतलब है कि लगातार उठ रही मांगों के बावजूद जिले में अब तक ब्लड बैंक की स्थापना नहीं हो पायी है. रेडक्राॅस की इकाई में भी ब्लड बैंक नहीं खुल सका है. अलबत्ता कुछ सालों से सदर अस्पताल परिसर में उसी भवन में छोटा सा ब्लड स्टोरेज सेंटर चल रहा है, जिसमें ब्लड बैंक खुलना था.
ब्लड बैंक के अभाव में हो रहा रक्त का अवैध कारोबार: माना जा रहा है कि ब्लड बैंक के अभाव ने ही रक्त के अवैध कारोबार के लिए उपयुक्त माहौल तैयार कर दिया. जानकार बताते हैं कि इमरजेंसी में आवश्यक ग्रुप का रक्त अवैध रूप से उपलब्ध कराने का सिलसिला जिले में दशकों पुराना है, पर पहले उतनी कीमत नहीं चुकानी पड़ती थी, जितनी अब पड़ती है. कारोबार के जानकारों का कहना है कि कीमत रक्त के ग्रुप पर निर्भर करता है.
साधारण ग्रुप का ब्लड एक हजार रुपये प्रति यूनिट पर मिल सकता है. लेकिन ग्रुप अगर असाधारण हो तो मुंहमांगी कीमत चुकानी पड़ती है. ऐसी ही मुसीबत में फंसे एक व्यक्ति ने बताया कि दो साल पहले उन्हें अपने परिजन के लिए अचानक तीन यूनिट ओ निगेटिव ग्रुप के रक्त की जरूरत पड़ गयी. दो यूनिट का इंतजाम तो रिश्तेदारों ने खून देकर कर दिया, पर बाकी एक यूनिट के लिए उसे चार हजार पांच सौ रुपये चुकाने पड़े थे. जबकि एक अन्य व्यक्ति ने बताया कि पांच साल पहले उसे अपने पिता के लिए एक यूनिट के बदले 600 रुपये देने पड़े थे. जानकारों का कहना है
कि धीरे धीरे रक्त के अवैध कारोबारियों का एक पूरा नेटवर्क खड़ा हो चुका है. कहा तो ये भी जा रहा है कि नेटवर्क का संचालन सदर अस्पताल के आसपास से ही हो रहा है. गैरतलब है कि दो-चार दिन पहले एक गरीब रोगी के लिए इसी तरह से उपलब्ध कराये गये रक्त को लेकर सदर अस्पताल में खासा हो हंगामा हुआ था. रक्त की गुणवत्ता को लेकर कई तरह की बातें सामने आयी थी. बात यहां तक पहुंची कि एएसपी राजीव रंजन ने अपना एक यूनिट रक्त देकर मरीज की मदद की.
बहुत पहले बना था भवन, नहीं मिला लाइसेंस
जिला स्वास्थ्य विभाग से मिली जानकारी के अनुसार भवन बहुत पहले बना था, लेकिन कुछ अर्हता पूरी नहीं होने के कारण ब्लड बैंक का लाइसेंस नहीं मिल पाया. फिर इस सिलसिले में बहुत प्रयास भी स्वास्थ्य विभाग ने नहीं किया. बताया जाता है कि हाल की घटनाओं के बाद विभाग फिर से सक्रिय हुआ है. जिला औषधि निरीक्षक ने एक डॉक्टर व दो लैब टेक्नीशियन को प्रशिक्षण दिलवाने के लिए कहा है. इसके साथ ही भवन में भी कमियों को पूरा किया गया है. बताया जाता है कि प्रशिक्षण के बाद ही ब्लड बैंक के लाइसेंस की प्रक्रिया शुरू होगी. लाइसेंस राज्य औषधि नियंत्रक कार्यालय से निर्गत होता है. ब्लड स्टोरेज सेंट के बाबत कहा जाता है कि वहां औसतन चार पांच यूनिट तक ही ब्लड रखने की सुविधा है. रक्त दान शिविरों आदि से जो रक्त जमा होता है, उसका अधिकांश हिस्सा पूर्णिया ब्लड बैंक भेज देना पड़ता है. वैसे जानकारों का कहना है कि ब्लड स्टोरेज को लेकर किये जाने वाले अधिकांश दावे हकीकत से दूर हैं.
कहते हैं सीएस
सिविल सर्जन डॉ एनके ओझा कहते हैं कि उनके संज्ञान में अब तक इस तरह के मामले नहीं आये हैं. यदि मामले आते हैं तो कार्रवाई होगी. जहां तक ब्लड बैंक बनाने की बात है तो राज्य स्तर पर इस बात को रखा गया है. कोई सार्थक परिणाम जल्द ही सामने आने की संभावना है.
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