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नेपाल में कब मनेगा लोकतंत्र का पर्व

जितेंद्र/मृगेंद्र, अररिया : भारत का मित्र पड़ोसी देश नेपाल लगभग 34 वर्षो के लोकतांत्रिक लड़ाई के बाद भी लोकतंत्र के पर्व को सही तौर पर मनाने में अब तक सफल नहीं हो पाये हैं. नेपाल में राजशाही का अंत भले ही हो गया है लेकिन अभी भी नेपाल में प्रजातांत्रिक व्यवस्था को कायम करने के […]

जितेंद्र/मृगेंद्र, अररिया : भारत का मित्र पड़ोसी देश नेपाल लगभग 34 वर्षो के लोकतांत्रिक लड़ाई के बाद भी लोकतंत्र के पर्व को सही तौर पर मनाने में अब तक सफल नहीं हो पाये हैं.

नेपाल में राजशाही का अंत भले ही हो गया है लेकिन अभी भी नेपाल में प्रजातांत्रिक व्यवस्था को कायम करने के लिए राजनीतिक दलों द्वारा स्वायत्त प्रदेश, लैंगिक , जातीय ओर धार्मिक समानता की मांग के कारण नेपाल राजनीतिक अस्थिरता से उबर नहीं पा रहा है. लगातार चार दिनों से नेपाल में विभिन्न पार्टियों व गुटों द्वारा जारी हड़ताल इसका ताजा उदाहरण है.

कभी वोट का केन्द्र बिंदु माने जाने वाला मधेश अब राजनीतिक शक्ति का केन्द्र बिंदु बन चुका है. कभी गजेन्द्र बाबू के द्वारा मधेश प्रदेश के लिए उठायी गयी आवाज अब नेपाल में मधेश प्रांत के मांग को लेकर दर्जनों राजनीतिक दलों में तब्दील हो चुका है.

नेपाल में जारी अनिश्चितकालीन बंद का जो कारण बन कर सामने आया है उसमें नेपाल का ताजातरीन बना संविधान है. इसके विरोध में हड़ताल व नेपाल बंद के आंदोलन में गये राजनीतिक दलों का यह आरोप है कि इस संविधान में नेपाल को छह प्रांतों में बांटने का फैसला लिया गया है. जिसे राजनीतिक दलों को मंजूर नहीं है. सीपीएन, माओवादी व मधेसी पार्टियों ने संविधान में देश के छह प्रांतों में बांट कर संघीय व्यवस्था बनाये जाने का विरोध कर रही है. जबकि आंदोलन कर रही 23 पार्टियों की मांग नेपाल के तराई इलाका में, जहां मधेशी रहते हैं, मधेशी राज्य बनाने की मांग पर अड़े हुए हैं. इस संपूर्ण मधेशी राज्य में नेपाल के कुल 75 जिलों में से 22 जिले आते हैं. राजनीतिक दलों का कहना है कि वर्तमान व्यवस्था के तहत उत्तर से दक्षिण दिशा में पड़ने वाले नौ जिलों को मिला कर एक मधेशी राज्य बनाया जाय. जो कि कही से भी न्याय संगत नहीं है. क्योंकि ऐसा करने के कारण पूर्व ओर पश्चिम के मधेशी बेरोजगार हो जायेंगे. इसलिए पूर्व से लेकर पश्चिम में पड़ने वाले सभी जिलों को एक राज्य बनाया जाय.

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