पटना: ठाकुर मुनीश्वर प्रसाद सिंह राजनीति की उस विचारधारा के प्रतिनिधि थे, जो सिद्धांतों पर टिकी है. उन्होंने लंबी उम्र जिया. जीवन के अंतिम दौर में सक्रिय राजनीति से अलग-थलग रहे, लेकिन कभी सिद्धांतों से समझौता नहीं किया. मंगलवार की रात करीब 9.40 बजे राजाबाजार स्थित एक निजी अस्पताल में उनके निधन की सूचना उन लोगों के लिए शोक थी, जो मूल्य आधारित राजनीति में भरोसा रखते थे.
शायद कम ही लोगों को पता हो कि 15 अगस्त, 1947 को भारत आजाद नहीं होता, तो मुनीश्वर प्रसाद सिंह को फांसी दे दी जाती. वह आजादी की लड़ाई में क्रांतिकारियों की जमात में शामिल थे. प्रख्यात समाजवादी नेता सूरज नारायण सिंह ने आजाद दस्ता का गठन किया था. मुनिश्वर बाबू उस दस्ते में थे. 1942 के आंदोलन में भाग लिया. कई साल तक भूमिगत रहे. सूरज बाबू के साथ बनारस में पकड़े गये. उन्हें लखनऊ जेल ले जाया गया, जहां पर लाल बहादुर शास्त्री के साथ उन्हें रखा गया. अंत में उन्हें हजारीबाग जेल शिफ्ट किया गया. उन्हें फांसी की सजा हुई, लेकिन, तब तक देश आजाद हो गया. इस कारण मुनिश्वर बाबू बच गये. वह जेपी को जेल तोड़ कर भगाने वालों में से थे. जेबी कृपलानी के साथ आजादी के पूर्व गठित की गयी कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के संस्थापक सदस्य भी थे. आजादी के बाद भी उन्होंने व्यवस्था में बदलाव के लिए संघर्ष का रास्ता चुना.
समाजवादियों के बीच वह काफी लोकप्रिय थे. बैठकों में साफ-साफ बोलते थे. कोई लाग-लपेट नहीं. भले ही किसी को नागवार गुजरे. पहली बार वह महनार से 1957 में चुनाव लड़े, लेकिन पांच सौ वोटों के अंतर से हार गये. फिर 1962 में पहली बार प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से विधायक बने. वह बिहार के पहले विधायक थे, जिन्होंने लोकनायक जेपी के आह्वान पर विधानसभा से इस्तीफा दिया. समाजवादियों के बीच फूट पड़ी और सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना हुई. वह इसके संस्थापकों में से एक थे. जेपी आंदोलन में करीब 18 माह तक मुजफ्फरपुर सेंट्रल जेल में रहे. 1990 में जनता पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया, तो वह सोशलिस्ट पार्टी (लोहिया) के टिकट पर महनार से विधायक चुने गये. उनके निकट के लोगों का कहना है कि मुनिश्वर बाबू ने मंत्री या विधायक रहते हुए कभी ऐसे लोगों की पैरवी नहीं की, जो नियम विरुद्ध हो. कई लोग नाराज भी हुए. 1979 में उन्हें पहली बार रामसुंदर दास के नेतृत्व में बनी सरकार में मंत्री बनाया गया था.
जीवन के अंतिम दिनों में वह पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर द्वारा गठित सजपा में शामिल रहे. वह चंद्रशेखर, जार्ज फर्नाडीस, मधु लिमये व बसावन सिंह जैसे नेताओं के काफी करीबी थे. उनके घर पर समाजवादी नेताओं का जमावड़ा लगा रहता था. मुनीश्वर बाबू राजनीति में आयी क्षरण से काफी दुखी रहा करते थे. वह भले ही इस दुनिया से चले गये, लेकिन वह उन ताकतों के बीच सदा नायक बने रहेंगे, जो व्यवस्था में बदलाव के लिए संघर्ष कर रही हैं.