पटना: अपने खोये साख को एक बार फिर कायम करने के फिराक में लगे प्रतिबंधित नक्सली संगठन भाकपा (माओवादी) बिहार पुलिस समेत केंद्रीय सुरक्षा बलों में काम कर रहे अधिकारियों व जवानों के पैतृक आवासों पर लगातार हमले की तैयारी में है.
इस संबंध में राज्य व केंद्र सरकार की खुफिया एजेंसियों ने सरकार को आगाह कर दिया है. नक्सली खासकर उन पुलिस अधिकारियों के नक्सल प्रभावित इलाकों में अवस्थित पैतृक आवासों को निशाना बनाने की तैयारी में हैं, जो फिलहाल एंटी नक्सल ऑपरेशन में लगे हैं. खुफिया एजेंसियों ने खासकर वैसे पुलिस कर्मियों को विशेष सावधानी और सतर्कता बरतने की सलाह दी है, जो सीआरपीएफ, कोबरा बटालियन, बिहार पुलिस के जिला पुलिस बल और एसटीएफ में काम कर रहे हैं और अभी बिहार में ही पदस्थापित हैं.
युवाओं का मनोबल तोड़ने की कोशिश : खुफिया एजेंसियों ने नक्सलियों के इस नये ट्रेंड की तुलना अब से डेढ़ दशक पूर्व आंध्र प्रदेश में उनके इस तरह के हमलों से की है. डेढ़ दशक पूर्व आंध्र प्रदेश में पीपुल्स वार ग्रुप ने राज्य पुलिस बल और केंद्रीय अर्धसैनिक बलों में तैनात पुलिसकर्मियों के निजी आवासों को इसी तरह निशाना बनाया था और एक साल के अंदर करीब डेढ़ सौ पुलिसकर्मियों के घरों को विस्फोट से उड़ा दिया था. खुफिया एजेंसियों की मानें, तो नक्सली अपनी इन कार्रवाइयों के माध्यम से एक साथ कई संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं. सबसे पहले तो उन ग्रामीण युवाओं का हौसला तोड़ने की कोशिश में हैं, जो अपनी योग्यता के बल पर पुलिस बल में काम करने का सपना देख रहे हैं.
उल्लेखनीय है कि विगत 24 जुलाई को नक्सलियों ने औरंगाबाद के अंबा थाना क्षेत्र के मंझौली गांव में कटिहार में पदस्थापित बिहार पुलिस के निरीक्षक केदारनाथ सिंह के पैतृक आवास को विस्फोट कर उड़ा दिया था, जबकि उसके ठीक छह दिन बाद ही सीआरपीएफ में तैनात विनोद सिंह का पैतृक आवास (पिपरा, कुटुंबा, औरंगाबाद) को विस्फोट कर उड़ा दिया था. विनोद सिंह गया के सर्वाधिक नक्सल प्रभावित क्षेत्र बाराचट्टी में सीआरपीएफ में तैनात हैं.
परचे-बैनर से दे रहे संदेश : खुफिया एजेंसियों ने गया, औरंगाबाद, जमुई, रोहतास, कैमूर, सीतामढ़ी और शिवहर से बरामद नक्सलियों के कुछ ऐसे परचे और बैनर भी बरामद किये हैं, जिनमें नक्सलियों ने पुलिस बल व केंद्रीय सुरक्षा बलों में काम कर रहे स्थानीय लोगों से अपील की है कि वे अपने ही लोगों पर हमले की कोशिश नहीं करें. अपने लोगों का मतलब उन लोगों से है, जो उसी गांव के रहनेवाले हैं, लेकिन अब नक्सली आंदोलन के पैरोकार बन चुके हैं.
ऑपरेशन में लगे बिहारी जवानों की संख्या घटेगी
पटना. औरंगाबाद में पुलिसकर्मियों के आवासों को निशाना बनाये जाने की खबरों ने राज्य के नक्सल प्रभावित इलाकों में तैनात केंद्रीय अर्धसैनिक बलों की नींद हराम कर दी है. नक्सल प्रभावित जिलों में सीआरपीएफ व कोबरा बटालियन की करीब 34 कंपनियां तैनात हैं और इनमें करीब 40 फीसदी जवान व अधिकारी बिहार के हैं. आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि इनकी संख्या में बदलाव पर विचार किया जा रहा है. उनकी संख्या घटा कर 20 प्रतिशत किये जाने की संभावना है.