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सब कुछ एक ही है

बहुत से लोग भगवान को देखना चाहते हैं. यदि आप भी चाहते हैं, तो आपको चाहिए कि आप दुनिया को देखना छोड़ दीजिये. यदि आप दुनिया को देखेंगे, तो आप भगवान को नहीं देख पायेंगे. या तो आप भगवान को देख सकते हैं या फिर दुनिया को देख सकते हैं. आप दोनों नहीं देख सकते. […]

बहुत से लोग भगवान को देखना चाहते हैं. यदि आप भी चाहते हैं, तो आपको चाहिए कि आप दुनिया को देखना छोड़ दीजिये. यदि आप दुनिया को देखेंगे, तो आप भगवान को नहीं देख पायेंगे. या तो आप भगवान को देख सकते हैं या फिर दुनिया को देख सकते हैं. आप दोनों नहीं देख सकते. आपको एक ही चुनना पड़ेगा. यदि आप भगवान को देखना चाहते हैं, तो मैं आपको फौरन दिखा सकता हूं. क्वाॅन्टम भौतिकी भगवान को देख सकती है. बस यह जानिये कि सब कुछ एक ही है और सब कुछ एक से ही बना है.

यह सिर्फ एक भ्रम है कि यह एक व्यक्ति है, यह दूसरा व्यक्ति है. यह मात्र एक भ्रम है कि यह एक वस्तु है, यह दूसरी वस्तु है. सारी वस्तुएं एक से ही बनी हैं. हम एक होलोग्राम की तरह हैं. एक प्रकाश की किरण से होलोग्राम बनता है. ऐसा लगता है कि कोई वस्तु बन गयी है, लेकिन वास्तव में वह वस्तु नहीं है, मात्र प्रकाश का ही खेल और प्रदर्शन है. यह पूरी सृष्टि प्रकाश का खेल और प्रदर्शन है, जो दिखने में अलग लगता है. इस ग्रह पर भगवान के अलावा और कुछ भी नहीं है. यदि आप कोई फिल्म देखने बैठते हैं, आप सामने परदे पर जो भी देखते हैं, वह केवल प्रकाश है, जो उससे निकल रहा है.

एक चलती हुई तसवीर है, जिसमें से प्रकाश निकल रहा है, और प्रतीत होता है जैसे अलग-अलग वस्तुएं हैं, लोग हैं, और अलग-अलग घटनाएं हैं. इसी तरह यह पूरी दुनिया, चेतना का ही खेल और प्रदर्शन है. न तो कोई तत्व है, और न ही कोई ऊर्जा. न कोई आप हैं, न कोई मैं हूं, न ही कोई ये है, न ही कोई वो है. ये सब एक ही है. बस! आप स्थिर रहिये. मेज, कुरसी, छत, दरवाजा सब लकड़ी का बना है और यह सत्य है. मगर आप दरवाजे की जगह कुरसी और कुरसी की जगह दरवाजे का इस्तेमाल नहीं कर सकते. यह हमारा मन है, जो भिन्नता देखता है.

हमारी बुद्धि इन अंतरों को अनुभव करती है. आप बुद्धि से परे जाइये, और स्थिर रहिये. केवल एक ही है. आप ‘एक’ नहीं कह सकते, क्योंकि ‘एक’ कहने के लिए, आपको दो चाहिए. अगर आप किसी को पूर्ण कहते हैं, तो इसका मतलब कि आप उससे बाहर हैं और कह रहें है कि वह पूर्ण है.

– श्री श्री रविशंकर

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