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जीवन के विकारों से बचाता है अध्यात्म

बल्देव भाई शर्मा रक्षाबंधन उत्सव के दिन भाई-बहन से लेकर सियाचिन जैसे दुर्गम क्षेत्र में तैनात भारतीय सैनिकों को राखी बांधे जाने की खबरें खूब चर्चित रहीं. इनमें एक खबर ने और भी कई लोगों का ध्यान खींचा होगा कि बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद ने पीपल के पेड़ को राखी बांधी. प्रतीकात्मक रूप […]

बल्देव भाई शर्मा

रक्षाबंधन उत्सव के दिन भाई-बहन से लेकर सियाचिन जैसे दुर्गम क्षेत्र में तैनात भारतीय सैनिकों को राखी बांधे जाने की खबरें खूब चर्चित रहीं. इनमें एक खबर ने और भी कई लोगों का ध्यान खींचा होगा कि बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद ने पीपल के पेड़ को राखी बांधी.

प्रतीकात्मक रूप में इसका एक बड़ा संदेश है कि वृक्षों की रक्षा का संकल्प लिया जाये और मानव जीवन के लिए उपयोगी हर वनस्पति, पर्यावरण के संरक्षण में जुटें. वैसे भी पीपल का वृक्ष मनुष्य के लिए अत्यंत उपयोगी माना गया है. वनस्पति वैज्ञानिक बताते हैं कि वह दिन भर आक्सीजन छोड़ता है और वातावरण में फैली कार्बनडाइआक्साइड गैस जो जीवन के लिए बेहद घातक है, उसको पीता है. एक तरह खुद विष पीकर मानव जीवन को अमृत प्रदान करता है पीपल.

गीता में श्रीकृष्ण ने भी पीपल के पेड़ की महत्ता बताते हुए कहा है-‘अश्वत्थ्: सर्ववृक्षाणां देवर्षीणां च नारद:.’ यानी मैं (श्रीकृष्ण) वृक्षों में अश्वत्थ (पीपल) हूं और देवर्षियों में नारद हूं. श्रीकृष्ण सृष्टि के संदर्भ में पीपल के वृक्ष की व्याख्या करते हुए आगे कहते हैं-‘उर्ध्वमूलमद्य: शाखमश्वत्थ्ं प्राहुरव्ययम/छंदासि थस्य पर्णाति यस्तं वेद स वेदवित्.’ अर्थात यह सृष्टि एक ऐसे पीपल वृक्ष के समान है जिसका मूल (ईश्वर) ऊपर है अर्थात अविनाशी है. शाखाएं (संसार) नीचे की ओर हैं एवं छंद (वैदिक मंत्र) जिसके पत्ते हैं.

इससे पीपल के वैज्ञानिक और आध्यात्मिक महत्व को सहज ही समझा जा सकता है. पीपल की रक्षा करना यानी सृष्टि की रक्षा और विशेष कर मनुष्य जीवन की रक्षा करना है. भारतीय जीवन दर्शन में पीपल की पूजा का महात्म्य शायद इसीलिए हमारे पूर्वजों ने रखा.

वैसे भी पेड़ लगाने और अपनी संतति की तरह उनकी हिफाजत, साज, संभाल करने का चलन हमारे समाज में प्रचलित रहा है. अनेक कथा प्रसंग हैं जिनमें पेड़ों की रक्षा के लिए लोगों ने अपने जीवन बलिदान कर दिये. राजस्थान में वृक्षों और जीव-जंतुओं की रक्षा के लिए हजारों विश्नोइयों ने अपना जीवन न्योछावर करने में जरा सी भी हिचक नहीं दिखाई.

उत्तराखंड का प्रसिद्ध ‘चिपको आंदोलन’ विश्व विख्यात है जहां एक ग्रामीण महिला गौरा देवी के नेतृत्व में पहाड़ की स्त्रियों का हुजूम उजड़ पड़ा पेड़ों की रक्षा के लिए. उनकी एकजुटता के आगे बड़ी संख्या में पेड़ों को काटने का मंसूबा धरा रह गया.

एक-एक पेड़ से महिलाएं यहां तक कि छोटी-छोटी बच्चियां भी बाहें फैला कर चिपक गयीं कि पहले हमें काटो तब पेड़ पर आरा या कुल्हाड़ी चलाना. पेड़ों को इन असंख्य बहनों ने राखी बांध दी कि पेड़ हमारे भाई हैं, इन्हें एेसे कटने नहीं देंगे. यह विडंबना ही है कि विकास के नाम पर आज भी लाखों-लाख पेड़ काटे जा रहे हैं. बड़ी निर्ममता और बेहयाई से प्रकृति को निर्वस्त्र किया जा रहा है. पेड़ और वनस्पति ही प्रकृति का आवरण है, इनके बिना प्रकृति शोभाहीन हो कर कुपित हो उठती है, तब केदारनाथ त्रासदी जैसा प्रचंड विनाशलीला सामने आती है.

हमारा अध्यात्म दर्शन क्या केवल पुस्तकीय ज्ञान है जिसको पढ़ लिया और रख दिया बस? अध्यात्म का तो मतलब ही है धर्म के द्वारा दिखाये मार्ग पर चलना, यानी धर्म द्वारा स्थापित जीवन मूल्यों-नियमों-संस्कारों का आचरण व पालन. रक्षाबंधन पर्व भले ही साल में एक दिन मनाया जाता है, लेकिन यह याद बनाये रखने के लिए कि राखी के रूप में यह स्नेह सूत्र परस्पर हमारे मनों को बांधे रखे और हम अपने ईष्या-द्वेष-स्वार्थ-अहंकार-वैमनस्य जैसे दुर्गुणों से इसे कमजोर न होने दें. इसीलिए राखी बांधते समय मंत्र बोला जाता है – येन बद्धो बलीराजा दानवेंद्रों महाबल:/ तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल.

जिस प्रकार दानवों के राजा बली को (लक्ष्मी जी ने) रक्षा सूत्र में बांधा था. उसी प्रकार मैं तुम्हें इसी रक्षा सूत्र में रहना है. रक्षा सूत्र में स्थिर रह कर हमारा कल्याण करो.

विष्णु पुराण में वामन अवतार की कथा बड़ी रोचक है कि किस प्रकार विष्णु दानवों के राजा महादानी, पराक्रमी बली से वामन रूप धारण कर तीन पग भूमि मांगते हैं और दो पगों में ही भू-लोक व घु-लोक (आकाश) को नाप लेते हैं. तीसरा पग नापने हेतु बली अपना सिर आगे कर देता है और विष्णु के चरण का स्पर्श पा कर पाताल लोक चला जाता है.

विष्णु उसके त्याग से प्रसन्न हो कर वर मांगने को कहते हैं, तब वह विष्णु को ही सदा अपने साथ रखने का वर मांग लेता है. लक्ष्मी बेचैन हो उठती है कि अब भगवान उनके पास नहीं रहेंगे. उन्हेें युक्ति सूझती है और वह राखी ले कर बली के पास जाती है जिसे बांध कर भाई बली से उपहार रूप में अपने पतिदेव विष्णु को वापस पाती है.

यह रक्षा सूत्र (राखी) पारंपरिक रूप लेकर आज भले ही भाई-बहन के बीच संबंधों का सेतु बन गया हो, परंतु इसका इतना भर अर्थ नहीं है. रक्षा बंधन तो परस्पर कल्याण और स्नेह की भावना को दृढ़ करने का पर्व है.

इसीलिए हमारे शास्त्रकारों ने कहा है- जनेना विधिना यस्तु रक्षाबंधनमाचरेत. राजा को पुरोहित, यजमान को ब्राह्मण, यहां तक कि पत्नी द्वारा पति को भी रक्षा सूत्र बांधा जाता है. भविष्योत्तर पुराण में कथा है कि देव लोक को राक्षसों से बचाने के लिए गुरु बृहस्पति के सुझाव पर इंद्राणी ने देवराज इंद्र को राखी बांध कर विजय की कामना की. रक्षा सूत्र की इसी व्यापक भावना का विस्तार पेड़-पौधों और जीव-जंतुओं की रक्षा के संदेश तक जाता है, ताकि हम प्रकृति का संरक्षण कर अपने कल्याण व सुख तथा शांति-सद्भभाव की राह पर चल सकें.

आज का दौर जिस तरह व्यक्ति को आत्मकेंद्रित बना रहा है और अकेलापन उसकी नियति बनता जा रहा है कि वह सबके बीच रह कर भी अपने मन का सुख-दुख बांटने को छटपटाता रहता है. इसी छटपटाहट और अलगाव को पाटने के लिए यूरोपीय समाज से निकल कर फ्रेंडशिप डे और फ्रेंडशिप बैंड जैसी अवधारणाओं का चलन हमारे यहां शुरू हुआ है.

ये तो बीमारी पनपने के बाद शुरू किये गये उपचार जैसे हैं, लेकिन हमारे यहां तो मन और जीवन बुराइयों, बीमारियों और विकारों की गिरफ्त में ही न आये इसकी पूर्व सावधानी (प्रिकॉशन) ज्यादा रखा गया. इसी को अध्यात्म कहा गया है. आज तो चिकित्सा विज्ञानी भी मानते हैं कि ‘प्रिवेंशन इज बेटर दैन क्योर’ वास्तव में यही अध्यात्म है.

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