मनुष्य के लिए मुक्ति को प्राप्त करने का केवल एक ही उपाय है और वह है इस जीवन का त्याग, इस जीवन यानी इस क्षुद्र जगत का त्याग, शरीर का त्याग एवं सीमाबद्ध सभी वस्तुओं का त्याग. यदि हम मन एवं इंद्रियगोचर इस छोटे से जगत से अपनी अासक्ति हटा लें, तो उसी क्षण मुक्त हो जायेंगे. बंधन से मुक्त होने का एकमात्र उपाय है- सारे नियमों के बाहर चले जाना, कार्य-कारण शृंखला के बाहर चले जाना. मुक्ति का अर्थ है- पूर्ण स्वाधीनता, शुभ और अशुभ दोनों प्रकार के बंधनों से मुक्त हो जाना. मनुष्य की मुक्ति के लिए सबसे आवश्यक वस्तु है- मनुष्यत्व.
इसके बाद चाहिए मुमुक्षुत्व- इस संसार के सुख-दुख से छुटकारा पाने की तीव्र इच्छा, इस संसार से प्रबल घृणा. इसके बाद चाहिए महापुरुषों का संग यानी गुरु-लाभ. तभी मिलेगी मुक्ति. श्री रामकृष्ण देव कहते थे, ‘पैर में कांटा चुभने पर उसे निकालने के लिए एक दूसरे कांटे की आवश्यकता होती है. कांटा निकल जाने पर दोनों कांटे फेंक दिये जाते हैं. इसी तरह सत् प्रवृत्ति के द्वारा असत् प्रवृत्तियों का दमन करना पड़ता है, परंतु बाद में सत्प्रवृत्तियों पर भी विजय प्राप्त करनी पड़ती है.’
इसी तरह शरीर और जगत दोनों को त्याग देने से ही हमें मुक्ति मिल पायेगी, परंतु इन तथ्यों के प्रति हम बहुत अज्ञान हैं. हम अपने चारों ओर जो कुछ भी अशुभ तथा क्लेश देखते हैं, उन सबका केवल एक ही मूल कारण है- अज्ञान. मनुष्य को ज्ञान-लोक दो, उसे पवित्र एवं आध्यात्मिक बल-संपन्न करो और शिक्षित बनाओ, तभी संसार से दुख का अंत हो पायेगा. यदि मनुष्य के भीतर से अज्ञानता नहीं गयी, तो समझो ये अशुभ और क्लेश कभी नहीं दूर होनेवाले.
बहुत से लोग ऐसे होते हैं, जो हाेते तो स्वयं बड़ अज्ञानी हैं, परंतु फिर भी अहंकार से अपने को सर्वज्ञ समझते हैं. यह सोचना कि मेरे ऊपर कोई निर्भर है तथा मैं किसी का भला कर सकता हूं, तो यह अत्यंत दुर्बलता का चिह्न है. यह अहंकार ही समस्त आसक्ति की जड़ है और इस आसक्ति से ही समस्त दुखों की उत्पत्ति होती है. यह अहंकार अज्ञानता से आता है. इसलिए मनुष्यों को चाहिए कि सबसे पहले ज्ञान की ओर बढ़ें.
– स्वामी विवेकानंद