हमारे अखाड़े के सामने अगर हम चार ईंट डाल दें, तो कुछ ही देर में वे ईंट गायब हो जायेंगे. हम यहां के पड़ों की छंटाई करके बाहर डालते हैं. एक घंटे के बाद आओ तो उन कटी डालों को यहां नहीं पाओगे. हम तो कहते हैं उठाओ, हमें खुशी होती है. उनके जीवन का यही काम है.
अब ऐसे में पढ़ाई का उनके जीवन में क्या स्थान है? साक्षरता और पढ़ाई कहां तक जीवन संगत है, उनकी समझ में नहीं आता है. इसलिए बहुतों की पढ़ाई भी छूट जाती है. जिस तरह से हमारा देश और शासन चल रहा है, उसको देखते हुए ही मैं यह बात कह रहा हूं कि मैंने अपने विश्वभ्रमण में ऐसी कोई झलक नहीं देखी कि अगले पचास-सौ साल में भारत के गांव जापानी या स्विस या फ्रेंच गांव जैसे हो जायेंगे. नहीं, यह हो ही नहीं सकेगा, क्योंकि यहां की जो मूल समस्याएं हैं, वे केवल आज से सबंधित हैं, कल से नहीं.
मेरे अपने आकलन के अनुसार, भारत की सत्तर प्रतिशत जनता के सामने ‘आज’ समस्या है, ‘कल’ नहीं, क्योंकि यह देश कृषि प्रधान देश है. कृषि प्रधान देश को तकनीकी के आधार पर आगे नहीं बढ़ाया जा सकता. यहां की तकनीकी का आधार खेती और पशुपालन होना चाहिए, सुपरसॉनिक विमान नहीं.
– स्वामी सत्यानंद सरस्वती