मनुष्य दुखी क्यों होता है? इसलिए कि वह अनुचित महत्त्वाकांक्षाएं पालता है. वह आवश्यकताएं कम करे और सीमित साधनों पर निर्वाह की सोचे, तो उतना दुखी नहीं रहेगा, जितना रहता है. स्वभावत: जीवन की आवश्यकताएं बड़ी सीमित और स्वल्प हैं. बुद्धिहीन और अनगढ़ काया वाले प्राणी शरीर यात्रा के साधन सरलतापूर्वक जुटा लेते हैं.
फिर कोई कारण नहीं कि विलक्षण और अद्भुत बुद्धिमत्ता से संपन्न मनुष्य अपने निर्वाह में किसी कठिनाई का अनुभव करे. ईश्वर ने मनुष्य जीवन का उपहार सुरदुर्लभ अनुदान के रूप में प्रदान किया है, साथ ही उसके साथ कई उत्तरदायित्व भी लाद दिये हैं. स्पष्ट है कि बड़े पद या गौरव जिन्हें प्रदान किये जाते हैं, उन्हें बड़ी जिम्मेवारियां दी जाती हैं.
सेनापति का पद, दर्जा सम्मान, अधिकार, वेतन अदि अन्यान्यों से ज्यादा होता है, पर उसके ऊपर जिम्मेवारियां भी इतनी अधिक होती हैं कि तनिक सा प्रमाद करने पर भी उसे क्षम्य नहीं समझा जाता. जबकि सफाई कर्मचारी के प्रमाद की छोटी चेतावनी या प्रताड़ना से भरपाई हो जाती है.
कारण, सफाई कर्मचारी की लापरवाही से थोड़ी सी गंदगी बढ़ने भर की सीमित हानि होती है, किंतु सेनापति की भूल से तो सारी सेना का ही नहीं, पूरे देश का ही सर्वनाश हो सकता है.
– पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य