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समष्टिगत देवता
इस सृष्टि रचना में सर्वप्रथम प्रकृति व चेतन ब्रह्म के संयोग से पांच भूतों की उत्पत्ति हुई तथा इन पांचों भूतों के संयुक्त भाव के साथ चेतनाशक्ति के कारण ही अंत:करण का निर्माण हुआ, जिसमें संकल्प-विकल्प के कारण उसे मन कहा गया. संकल्प-विकल्प के कारण जो अनिश्चय होता है, उसका निश्चय करनेवाली शक्ति का नाम […]
इस सृष्टि रचना में सर्वप्रथम प्रकृति व चेतन ब्रह्म के संयोग से पांच भूतों की उत्पत्ति हुई तथा इन पांचों भूतों के संयुक्त भाव के साथ चेतनाशक्ति के कारण ही अंत:करण का निर्माण हुआ, जिसमें संकल्प-विकल्प के कारण उसे मन कहा गया. संकल्प-विकल्प के कारण जो अनिश्चय होता है, उसका निश्चय करनेवाली शक्ति का नाम बुद्धि है.
यह अंत:करण निरंतर चिंतन करता रहता है, जिससे इसका नाम चित्त हुआ तथा यह अहंभाव वाला होने से इसे अहंकार कहा गया है. बुद्धि के तीव्र होने से ही अहंकार की भावना का सूत्रपात होता है. ये चारों कार्य एक ही अंत:करण में होते हैं, किंतु इसके कार्यों की भिन्नता के कारण ये चार नाम दिये गये हैं. इन चारों का संचालन करनेवाली चार शक्तियां हैं, जो इनके देवता कहे जाते हैं.
मन का देवता चंद्रमा है, बुद्धि का ब्रह्मा, चित्त का वासुदेव तथा अहंकार का रुद्र है. समष्टि में ये चार ही देवता समष्टि के उक्त कार्यों का संचालन करते हैं तथा ये ही शक्तियां शरीर में मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार बन कर जीवन के कार्यों का संचालन करती हैं. ये समष्टिगत देवता ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र व चंद्रमा इन शक्तियों के प्रतीक हैं, जो सृष्टि के संचालन का कार्य करते हैं. ये स्थूल शरीरधारी नहीं हैं.
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