हम वैचारिकता की पूजा करते हैं. जितना ज्यादा और तीव्रता से हम सोचते हैं, उतने ही बड़े माने जाते हैं. सभी दार्शनिकों ने असंख्य संकल्पनाएं दी हैं. पर यदि हम अपने ही भ्रम का निरीक्षण करें, अपनी व्यक्तिगत जिंदगी में संकीर्ण ढंग से देखने के रवैये को देखें, घर पर रोजमर्रा की दिनचर्या में देखें. इन सब के प्रति जागरूक रहें, तो देखें कि कैसे विचार अविरत समस्याएं बनाने में ही लगा रहता है. विचार छवि बनाता है और छवि बांटती है. यह देखना बुद्धिमत्ता है.
खतरे को खतरे की तरह देखना बुद्धिमत्ता है. मनोवैज्ञानिक खतरों को देखना बुद्धिमत्ता है. पर हम नहीं देखते. इसका अर्थ यह है कि कोई आपको हमेशा हांकता रहे, उपदेश देता रहे, धकेलता रहे, संचालित करता रहे, अनुनय करे कि कुछ करो तो ठीक वरना आप अन्य सारे समय अपने आप जागरूक रहने को बिल्कुल तैयार नहीं हैं.
आप चाहते हैं कि एक आदमी बताये कि यह करना है यह नहीं, यहां जाना है यहां नहीं. और ऐसा कोई भी नहीं करेगा. यहां तक कि अति जागरूक व्यक्ति, बुद्धपुरुष भी नहीं करेगा, क्योंकि अगर कोई जागरूक बुद्धपुरुष आपके पीछे इस तरह पड़ भी जाये, तो आप केवल उसके दास या गुलाम की तरह हो जायेंगे, उससे ज्यादा कुछ भी नहीं.
– जे कृष्णमूर्ति