परमात्मा लाखों तरह से तुम्हारे द्वार खटखटा सकता है. लेकिन जब कभी वह द्वार खटखटाता है, तब तुम भयभीत हो जाते हो. ऐसा अनुभव होने लगता है कि जैसे तुम मर रहे हो. तुम रुक जाते हो. पीछे हट जाते हो. तुम अपनी आंखें बंद कर लेते हो, कान बंद कर लेते हो.
तुम खटखटाने की आवाज सुनते ही नहीं. तुम अपनी मांद में वापस लौट कर गुम हो जाते हो. तुम अपने द्वार बंद कर लेते हो. प्रेम, मृत्यु जैसा लगता है और वह है. जो लोग वास्तव में आध्यात्मिक आनंद पाना चाहते हैं, उन्हें उस मृत्यु से होकर गुजरना होगा, क्योंकि पुनर्जीवन केवल मृत्यु के द्वारा ही संभव है. जीसस कहते हैं कि प्रेम ही परमात्मा है.
यह सही बात है. प्रेम ही मुक्ति का प्रवेशद्वार है. प्रेम में मर जाना, अहंकार में जीने के स्थान से कहीं अधिक सुंदर है. अहंकार में जीने की अपेक्षा, सत्य में मर जाना कहीं अधिक सत्य है. अहंकार में बिताये जीवन से प्रेम में हुई मृत्यु अच्छी है. अहंकार में मरना, प्रेम में जीना है.
स्मरण रहे, जब तुम अहंकार को चुनते हो, तो वास्तविक मृत्यु चुन रहे हो, क्योंकि प्रेम में होना एक मृत्यु है. और जब तुम प्रेम को चुन रहे हो, तो केवल झूठी मृत्यु को चुन रहे हो, क्योंकि अहंकार में मरने से तुम कुछ भी नहीं खो रहे हो. तुम्हारे पास बिल्कुल प्रारंभ से ही कुछ भी नहीं था.
आचार्य रजनीश ओशो