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उपासना का विधान
इस संसार में ईश्वर पर विश्वास ने लोगों के आत्मनियंत्रण का पथ प्रशस्त किया है और उसी आधार पर मानवी सभ्यता का, आचार संहिता का, स्नेह-सहयोग एवं विकास परिष्कार का पथ प्रशस्त किया है. यदि मान्यता क्षेत्र से ईश्वरीय सत्ता को हटा दिया जाये, तो फिर संयम और उदारता जैसी मानवी विशेषताओं को बनाये रहने […]
इस संसार में ईश्वर पर विश्वास ने लोगों के आत्मनियंत्रण का पथ प्रशस्त किया है और उसी आधार पर मानवी सभ्यता का, आचार संहिता का, स्नेह-सहयोग एवं विकास परिष्कार का पथ प्रशस्त किया है.
यदि मान्यता क्षेत्र से ईश्वरीय सत्ता को हटा दिया जाये, तो फिर संयम और उदारता जैसी मानवी विशेषताओं को बनाये रहने का कोई दार्शनिक आधार शेष नहीं रह जायेगा. ईश्वर अंधविश्वास नहीं, एक तथ्य है. सूर्य, चंद्र, नक्षत्र आदि सभी का उदय-अस्त क्रम अपने र्ढे पर ठीक तरह चल रहा है. प्रत्येक प्राणी अपने ही जैसी संतान उत्पन्न करता है और हर बीज अपनी ही जाति के पौधे उत्पन्न करता है. शरीर और मस्तिष्क की संरचना और कार्यशैली देख कर आश्चर्यचकित होना पड़ता है.
इतनी सुव्यवस्थित कार्यपद्धति बिना किसी चेतना शक्ति के अनायास नहीं चल सकती. उस नियंता का अस्तित्व जड़ और चेतन दोनों क्षेत्रों में प्रत्यक्ष और परोक्ष की कसौटियों पर पूर्णतया खरा सिद्ध होता है. सत्कर्मो का फल तत्काल न मिलने पर लोग अधीर होने लगते हैं और दुष्कर्मो का तात्कालिक लाभ देख आतुर हो जाते हैं.
व्यक्तिगत चरित्र-निष्ठा व समाजगत सुव्यवस्था का आधार सुदृढ़ रहता है. इन्हीं परिणामों को देखते हुए तत्वज्ञानियों ने ईश्वर विश्वास को अपनाने की प्रेरणा दी है. वह आधार दुर्बल न होने पाये, इसलिए उपासना का विस्तृत विधि-विधान विनिर्मित किया है.
पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य
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