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ईश्वरीय गुणों का संचय
यह धारणा गलत है कि योग और आध्यात्मिकता मनुष्य को जंगल का वासी बना देते हैं और उसे संसार से दूर हटा लेते हैं. योग तो प्रत्येक स्थान में सिद्ध किया जा सकता है. योग है हमारे दैनिक जीवन में दिव्य गुणों को जागना. जीवन से दुर्गुणों का भाग जाना, उनका अस्त हो जाना ही […]
यह धारणा गलत है कि योग और आध्यात्मिकता मनुष्य को जंगल का वासी बना देते हैं और उसे संसार से दूर हटा लेते हैं. योग तो प्रत्येक स्थान में सिद्ध किया जा सकता है. योग है हमारे दैनिक जीवन में दिव्य गुणों को जागना. जीवन से दुर्गुणों का भाग जाना, उनका अस्त हो जाना ही दुनियादारी से हट जाने का अर्थ है.
यदि हम सद्गुणों का संचय करेंगे, तो आत्मतत्व की प्राप्ति अवश्य कर सकेंगे. इसलिए हमें चाहिए कि हम स्थिरबुद्धि, निरहंकारिता, सरलता, ईमानदारी, भद्रता, दानशीलता और पवित्रता जैसे सद्गुणों का अभ्यास अभी से आरंभ कर दें. वैसे तो एक ही गुण के विकास से तुम आनंद और शांति का अनुभव कर सकोगे. ज्योंही एक-आध गुण विकसित हो जायेगा, त्यों ही तुम अन्य गुणों को स्वत: ही जाग्रत होता पाओगे.
अभी इंद्रियां तुम्हें बार-बार विचलित करती रहती हैं. तुम छोटी-छोटी बातों को लेकर दुखी या अतिप्रसन्न हो जाते हो. अपनी चीजों के प्रति तो ममता और मोह के भाव रखते हो, जबकि दूसरों की चीजों को लापरवाही से देखते हो. इस आदत को बदलना होगा. अपनी-परायी नाम की कोई चीज नहीं. यह तो स्वार्थ का उदाहरण मात्र है.
यदि तुम सच्चे और ईश्वरीय गुणों का संचय करना चाहते हो, तो आज से ही तुम्हें परमार्थ के भावों से परिपूर्ण हो जाना होगा. याद रखो कि इस जगत में कोई वस्तु ऐसी नहीं, जिसे तुम सदा अपनी कह सको.
स्वामी शिवानंद सरस्वती
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