एक जिज्ञासा है. क्या वस्तुत: मरणोत्तर जीवन में आत्मा ऐसे किसी लोक, नगर, ग्राम, या देश में परिभ्रमण करती है? विज्ञान के प्रगतिशील युग में सौरमंडल के ग्रह-उपग्रहों को खोज लिया गया है.
लेकिन अब तक ऐसे किसी लोक के अस्तित्व की संभावना नहीं दिखती. तब क्या स्वर्ग-नरक, मात्र कल्पना भर हैं? कर्मो के फल प्राप्त करने के लिए कोई माध्यम नहीं है क्या? जिन कर्मो का फल इस जन्म में नहीं मिल सका उनके लिए ईश्वर के दरबार में कोई व्यवस्था नहीं है क्या? तो फिर शुभ और अशुभ कर्म करनेवालों को तदनुरूप फल कैसे मिलेगा? ऐसे अनेक प्रश्न उभर कर आते हैं और यह असमंजस उत्पन्न करते हैं कि यदि स्वर्ग-नरक का अस्तित्व था ही नहीं, तो धर्म-संस्थापकों ने इतना बड़ा कलेवर रच कर खड़ा क्यों कर दिया?
हमें जानना चाहिए कि स्वर्ग-नरक दोनों का अस्तित्व है और उनके माध्यम से शुभ-अशुभ कर्मो के फल मिलने की समुचित व्यवस्था मौजूद है. संदेहास्पद बात केवल इतनी भर है कि उनके लिए कहीं कोई नियत ग्राम या स्थान है या नहीं. यह लोक हमारा भावनात्मक दृष्टिकोण है.
इन दोनों ही लोकों में कर्मफल मिलने की समुचित व्यवस्था मौजूद है. उसका निर्माण स्वसंचालित प्रक्रिया के आधार पर हुआ है. किसी बाहरी शक्ति के हस्तक्षेप की उसमें आवश्यकता नहीं है. यही व्यावहारिक भी है और तर्कसंगत भी है.
पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य