जो अट्ठेय है उसे ग्रहण करने के लिए मन को भी ज्ञान रहित, ज्ञात रहित होना होगा. मन विचार प्रक्रिया का परिणाम है, काल का परिणाम है और इस विचार प्रक्रिया का अंत होना चाहिए, अंत पर आना चाहिए.
मन उसके बारे में नहीं सोच सकता, जो शाश्वत या कालातीत है, इसलिए मन को अपरिहार्यत: काल से मुक्त होना चाहिए, मन में चलनेवाली काल प्रक्रिया खत्म होनी चाहिए. केवल तब, जब मन बीते कल से पूरी तरह मुक्त हो, और आज को किसी आनेवाले कल के लिए इस्तेमाल ना कर रहा हो, तब ही मन अनंत को ग्रहण करने में सक्षम होता है.
वह जो ज्ञात है, उसका अज्ञात से कोई संबंध नहीं होता, इसलिए आप अज्ञात अट्ठेय से प्रार्थना नहीं कर सकते, आप अट्ठेय पर ध्यान केंद्रित नहीं कर सकते, अट्ठेय के प्रति समर्पित नहीं हो सकते.
इन सबका कोई अर्थ नहीं होता. महत्वपूर्ण और सार्थक है यह देखना, यह जानना कि हमारा मन किस तरह संचालित होता है, और यह ऐसे जाना जा सकता है कि हम अपनी ही कर्मो को देखें. इसलिए हमारा ध्यान से सरोकार है कि कोई अपने ही बारे में जान और समझ सके, मन के ऊपरी सतही तल पर ही नहीं, बल्कि संपूर्ण आंतरिक अस्तित्व, गुप्त-सुप्त चेतना के स्वरूप को समझ सके. इस सबको समङो जाने बिना, और मन को ढर्राबद्ध यांत्रिकता से मुक्त किये बिना आप मन की सीमाओं के पार नहीं जा सकते.
जे कृष्णमूर्ति