कई ऐसे महापुरुष हैं, जिनके पास वरदान देने की शक्ति है; परंतु उसका प्रभाव सीमित है. असंख्य बुद्ध और बोधिसत्व हैं, जो सदा हमारे लिए प्रार्थना करते हैं, परंतु फिर भी हमारी स्थिति कठिन बनी रहती है.
हम संसारी ही बने रहते हैं. इसलिए मैं सर्वदा अपने भाइयों और बहनों को परामर्श देता हूं कि प्रार्थना से कर्म अधिक महत्वपूर्ण है. हमें उद्यम करना चाहिए. कभी-कभी मैं सोचता हूं कि संवेदना से संबंधित मेरी बातें हृदय में नहीं उतरती हैं. मैं उन व्यक्तियों और संस्थाओं की सचमुच प्रशंसा करता हूं, जो निर्धनों की सहायता करते हैं और उनकी शिक्षा आदि के कई क्षेत्रों में कार्य कर रहे हैं. ये लोग संवेदना को व्यावहारिक स्तर पर कार्यान्वित कर रहे हैं.
किसी कर्म को बिना थके कार्यान्वित करने के लिए हमें दृढ़ संकल्प की आवश्यकता होती है. अपने लक्ष्य के बारे में हमारी स्पष्ट दृष्टि होनी चाहिए. इससे काम को सहजता और बिना थके निपटाना संभव होगा. यदि लक्ष्य सुस्पष्ट नहीं है या उसमें दुरूहता है तो उसके निष्पादन में वैसे ही तरीके अपनाने होंगे.
इन जटिल दार्शनिक अवधारणाओं के परिणामस्वरूप हमारे जीवन में भटकाव नहीं आना चाहिए. इसके विपरीत, इन दार्शनिक विचारों के अध्ययन से हमारे सम्मुख जीवन का स्पष्ट चित्र आ जाता है. ऐसा होने पर हमारी कार्य-योजना स्पष्ट हो जाती है. अंत में कर्म करते रहने के साथ-साथ हमारा लक्ष्य मन को जाग्रत करना है.
दलाई लामा