भारत के विभिन्न धर्मो के मर्मज्ञ विद्वानों ने देवताओं के विषय में समय-समय पर भ्रांतपूर्ण धारणाओं को फैलाते रहे हैं. विद्वत्ता का दंभ भरनेवाले अल्पज्ञ मनुष्य इन देवताओं को ही परमेश्वर के विभिन्न रूप मान बैठते हैं. वस्तुत: ये देवता ईश्वर के विभिन्न रूप नहीं, बल्कि अंश होते हैं.
ईश्वर तो एक है, किंतु उसके अंश अनेक हैं. वेदों का कथन है- नित्यो नित्यानाम यानी ईश्वर एक है, लेकिन उसके कई अंश रूपी नाम हैं. शास्त्र में आता है- ईश्वर: परम: कृष्ण: यानी कृष्ण ही एकमात्र परमेश्वर है और सभी देवताओं को इस भौतिक जगत का प्रबंध करने के लिए एक विशेष प्रकार की शक्तियां प्राप्त हैं. उनकी इन शक्तियों के कारण ही कुछ अल्पज्ञ लोग उन्हें परमेश्वर मान लेते हैं.
ये देवता जीवात्माएं हैं, जिन्हें विभिन्न मात्र में भौतिक शक्तियां प्राप्त होती हैं. वे कभी परमेश्वर-नारायण, विष्णु या कृष्ण के तुल्य नहीं हो सकते. यहां तक कि ब्रह्म तथा शिव जैसे बड़े-बड़े देवता भी परमेश्वर की समता नहीं कर सकते. ब्रह्म तथा शिव के द्वारा भी भगवान की पूजा की जाती है.
यह भौतिक संसार तथा इसके निवासी विराट सागर में बुलबुलों के समान हैं, किंतु संसार में मानव समाज क्षणिक वस्तुओं-यथा संपत्ति, परिवार तथा भोग की सामग्री के पीछे पागल रहता है. ऐसी क्षणिक वस्तुओं के लिए लोग देवताओं या मानव समाज के शक्तिशाली व्यक्तियों की पूजा करते हैं.
स्वामी प्रभुपाद