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गंगा में धुल जायेंगे 10 पाप

हिंदू धर्म में ऐसी मान्यता है कि गंगा दशहरा के पावन पर्व पर मां गंगा में डुबकी लगाने से सभी पाप धुल जाते हैं और मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है. वैसे तो गंगा स्नान का अपना अलग ही महत्व है, लेकिन इस दिन स्नान करने से मनुष्य सभी दुखों से मुक्ति पा जाता […]

हिंदू धर्म में ऐसी मान्यता है कि गंगा दशहरा के पावन पर्व पर मां गंगा में डुबकी लगाने से सभी पाप धुल जाते हैं और मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है. वैसे तो गंगा स्नान का अपना अलग ही महत्व है, लेकिन इस दिन स्नान करने से मनुष्य सभी दुखों से मुक्ति पा जाता है. इस पर्व के लिए गंगा मंदिरों सहित अन्य देवालयों पर भी विशेष पूजा-अर्चना की जाती है. इस दिन स्वर्ग से गंगा का धरती पर अवतरण हुआ था.
गंगा दशहरा के दिन गंगा नदी में स्नान करने से दस पापों का हरण होकर अंत में मुक्ति मिलती है. गंगा दशहरा के दिन दान-पुण्य का विशेष महत्व है. इस दिन दान में सत्तू, मटका और हाथ का पंखा दान करने से दोगुना फल प्राप्त होता है.
ज्योतिषी विजय मिश्र के अनुसार गंगाजी को स्वर्ग से पृथ्वी पर लाने के लिए अंशुमान के पुत्र दिलीप व दिलीप के पुत्र भगीरथ ने बड़ी तपस्या की थी. उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर माता गंगा ने उन्हें दर्शन दिया और कहा – मैं तुम्हें वर देने आयी हूं. राजा भगीरथ ने बड़ी नम्रता से कहा – आप मृत्युलोक में चलिये. गंगा ने कहा – जब मैं पृथ्वीतल पर अवतरण करूं, तब मेरे वेग को कोई रोकनेवाला होना चाहिए. ऐसा ना होने पर पृथ्वी को फोड़ कर रसातल में चली जाऊंगी और लोग मुझमें पाप कैसे धो पायेंगे. भगीरथ ने अपनी तपस्या से रुद्रदेव को प्रसन्न किया तथा समस्त प्राणियों की आत्मा रुद्रदेव ने गंगाजी के वेग को अपनी जटाओं में धारण किया.
क्यों पूजनीय हैं नदियां : भारतीय संस्कृति में देनेवाले को देवता कहा जाता है और उसकी पूजा-अर्चना की जाती है. जल हमें जीवन देता है. इसलिए जल की प्रमुख स्रोत नदियों को पवित्र मान कर उनकी पूजा-अर्चना की परंपरा सदियों से चली आ रही है. मानव शरीर जिन पंचतत्वों से मिल कर बना है, जल भी उनमें से एक प्रमुख तत्व है, जो ना सिर्फ उसे जीवन देता है, बल्किमानव शरीर को सुंदर और स्वच्छ भी बनाता है.
भारतीय संस्कृति में जल की सर्वाधिक महत्ता है. भारत नदियों का देश है. यहां जिन निदयों को अत्यंत पवित्र माना जाता है, उनमें प्रमुख हैं- गंगा, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, ब्रह्मपुत्र, कावेरी और सिंधु. उत्तर भारत में गंगा, यमुना और सरस्वती का विशाल प्रवाह है. जल में अमृत का वास होता है. यह औषधि स्वरूप है. इसीलिए लोग जल-सेवार्थ प्याऊ खुलवाते हैं. किसी प्यासे को पानी पिलाना उसे जीवन देने के समान है. इसीलिए जलदान को सर्वोत्तम दान माना गया है.
नदियां और तीर्थस्थल : नदी तट पर ही छठ-पूजन का विशेष विधान है. शाम के समय और दूसरे दिन प्रात:काल वहां सूर्यदेव की पूजा की जाती है. गंगा, यमुना और सरस्वती की संगम स्थली तीर्थ प्रयागराज के तट पर प्रत्येक 12 वर्ष पर कुंभ का मेला लगता है और वहां लाखों श्रद्धालु जल-पूजन तथा स्नान करते हैं. साथ ही यहां लोगों के मिलने-जुलने से विचारों का आदान-प्रदान होता है, जीवन में उत्साह बना रहता है और भाईचारे की भावना भी बढ़ती है.
पूजन विधि : गंगाजी की पूजा करने के लिए मंत्र इस प्रकार है – ओम नमो भगवति हिलि हिलि मिलि मिलि गंगे मां पावय पावय स्वाहा. इसका अर्थ है, हे भगवित गंगे! मुङो बार-बार मिल, पवित्र कर, पवित्र करे.
इस मंत्र के पठन के साथ पुष्प, दुग्ध, घी, शहद, मिष्ठान, वस्त्र इत्यादि से मां गंगा का पूजन किया जाना चाहिए तथा दान दक्षिणा दी जानी चाहिए. मां गंगा के पूजन के दौरान कोई संकल्प लेकर दस बार डुबकी लगानी चाहिए. उसके बाद साफ वस्त्र पहन कर घी से चुपड़े हुए दस मुट्ठी काले तिल हाथ में लेकर जल में डाल दें. इसके बाद गंगाजी की प्रतिमा का पूजन नीचे लिखे मंत्र के साथ करें-
नमो भगवत्यै दशपापहरायै गंगायै नारायण्यै रेवत्यै.
शिवायै अमृतायै विश्वरूपिण्यै नंदिन्यै ते नमो नम:.
तत्पश्चात भगवान नारायण, शिव, ब्रह्मा, सूर्य, राजा भगीरथ व हिमालय को वहां उपस्थित मान कर उनका भी पूजन करना चाहिए. इस दिन सोने अथवा चांदी के मछली, कछुए और मेंढ़क बना कर उनकी पूजा कर नदी में डालने की भी विधान है. अगर सोने-चांदी के नहीं बनवा पायें, तो आटे के भी बनाये जा सकते हैं.
व्रत कथा : एक बार महाराज सगर ने अश्वेध-यज्ञ करने की ठानी. उस यज्ञ की रक्षा का भार उनके पौत्र अंशुमान ने संभाला, पर देवराज इंद्र ने सगर के यज्ञीय अश्व का अपहरण कर लिया. यह यज्ञ के लिए विघ्न था. फलस्वरूप अंशुमान ने सगर की 60 हजार प्रजा लेकर अश्व को खोजना शुरू कर दिया. सारा भूमंडल छान मारा, पर यज्ञ का अश्व नहीं मिला.
फिर अश्व को पाताल-लोक में खोजने के लिए पृथ्वी को खोदा गया. खोदने पर उन्होंने देखा कि साक्षात भगवान महर्षि कपिल के रूप में तपस्या कर रहे हैं. उन्हीं के पास महाराज सगर का अश्व घास चर रहा है.
प्रजा उन्हें देख कर चोर-चोर कहने लगी. महर्षि कपिल की समाधि टूट गई. ज्यों ही महर्षि ने अपने आग्नेय नेत्र खोले, त्यों ही सारी प्रजा भस्म हो गयी. इन मृत लोगों के उद्धार के लिए ही महाराज दिलीप के पुत्र भगीरथ ने कठोर तप किया था.
उस तप से प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने उनसे वर मांगने को कहा, तो भगीरथ ने गंगा की मांग की. इस पर ब्रह्मा ने पूछा- राजन! तुम गंगा का पृथ्वी पर अवतरण तो चाहते हो, परंतु क्या तुमने पृथ्वी से पूछा है कि वह गंगा के भार तथा वेग को संभाल लेगी? मेरा विचार है कि गंगा के वेग को संभालने की शक्ति केवल भगवान शंकर में है.
इसलिए उचित यह होगा कि गंगा का भार एवं वेग संभालने के लिए भगवान शंकर का अनुग्रह प्राप्त कर लिया जाये. महाराज भगीरथ ने वैसा ही किया. उनकी कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने गंगा की धारा को अपने कमंडल से छोड़ा. तब भगवान शिव ने गंगा की धारा को अपनी जटाओं में समेट कर जटाएं बांध लीं.
परिणाम यह हुआ कि गंगा को जटाओं से बाहर निकलने का पथ नहीं मिल सका. अब महाराज भगीरथ को और भी अधिक चिंता हुई. उन्होंने एक बार फिर भगवान शिव की आराधना में घोर तप शुरू किया. तब कहीं भगवान शिव ने गंगा की धारा को मुक्त करने का वरदान दिया. इस प्रकार शिवाजी की जटाओं से छूट कर गंगाजी हिमालय की घाटियों में कल-कल निनाद करके मैदान की ओर मुड़ीं.
इस प्रकार भगीरथ पृथ्वी पर गंगावतरण करके बड़े भाग्यशाली हुए. उन्होंने जनमानस को अपने पुण्य से उपकृत कर दिया. युगों-युगों तक बहनेवाली गंगा की धारा महाराज भगीरथ की कष्टमय साधना की गाथा कहती है. गंगा प्राणीमात्र को जीवनदान ही नहीं देतीं, मुक्ति भी देती हैं. अत: भारत व विदेशों तक में गंगा की महिमा गाई जाती है.
सर्वाधिक पवित्र गंगा नदी
शास्त्रों और पुराणों में भी नदियों को पवित्र माना गया है, उसमें भी सर्वाधिक पवित्र मानी जाती है गंगा नदी. गंगा हिमालय के गोमुख से निकल कर भारत के विभिन्न शहरों से होते हुए गंगासागर में मिलती है.
इसके तीव्र वेग से कहीं पृथ्वी बह ना जाये, इसीलिए भगवान शंकर ने इसे अपनी जटाओं में धारण कर लिया. हरि के द्वार अर्थात हरिद्वार में गंगाजी की पूजा, अर्चना और स्नान के लिए भिन्न धार्मिक अवसरों पर श्रद्धालुओं की भीड़ एकत्र होती है. जीवन के सुखद या दुखद सभी अवसरों पर भारतीय मान्यताओं के अनुसार हरिद्वार में गंगा स्नान को अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है.
धार्मिक संस्कारों में जल पूजन
सनातन धर्म में सोलह संस्कार महत्वपूर्ण माने जाते हैं. इन संस्कारों में जल का विशेष महत्व है. प्रत्येक संस्कर के पूजन में जल-पूजन तथा जल-स्नान की विशेष महत्ता है. इसके बिना यज्ञ और पूजन सफल नहीं माने जाते. जल को बुराइयों का संहारक माना गया है. बच्चों के जन्मोपरांत कुआं पूजन की भी परंपरा है. ऐसा माना जाता है कि कुआं पूजन के बाद बच्चे को जल का स्पर्श करा कर उसे जल पिलाना आरंभ करना चाहिए. प्राचीन काल में कुएं ही जल प्राप्ति के साधन होते थे. इसीलिए जल को जीवन मानते हुए बच्चे की दीर्घायु की कामना से कुएं का पूजन किया जाता था. वस्तुत: जल को नदियों, सरोवरों, कुएं या कलश के रूप में पूजे जाने के पीछे यही कारण है कि जल जीवन का आधार है.
ऋ षि-मुनि भी नदियों के तटों पर ही निवास करते रहे हैं. सभी तीर्थस्थल नदियों और सागर तट पर स्थित हैं. इतिहास में भी इस बात का प्रमाण मिलता है कि सभी प्राचीन सभ्यताएं नदियों के तट पर ही विकसित हुई हैं. सागर व नदियां हमारे लिए प्रकृति की अमूल्य उपहार हैं.
गंगा दशहरा : हिंदुओं का प्रमुख त्योहार
गंगा दशहरा हिंदुओं का प्रमुख त्योहार है, जिसे पूर्ण भक्तिभाव के साथ मनाया जाता है. इसी दिन मां गंगा का स्वर्ग से धरती पर अवतरण हुआ था. भविष्य पुराण में सविस्तार वर्णन है कि मृत्युलोक में जो मनुष्य इस दिन गंगा के पानी में खड़ा होकर पूजन करता है, वह इच्छित फल को पा जाता है.
गंगा दशहरा के दिन गंगा नदी में स्नान करने से दस पापों का हरण होकर अंत में मुक्ति मिल जाती है. वराह पुराण में लिखा गया है कि ज्येष्ठ शुक्ला दशमी बुधवारी में हस्त नक्षत्र में श्रेष्ठ नदी स्वर्ग से अवतीर्ण हुई थी. वह दस पापों को नष्ट करती है.
इस कारण उस तिथि को दशहरा कहते हैं.इस पर्व के दिन मंदिरों-देवालयों को विशेष रूप से सजाया जाता है खासकर गंगा किनारे के मंदिरों की शोभा इस दिन देखते ही बनती है. लाखों की संख्या में श्रद्धालु गंगा में डुबकी लगाते हैं और पवित्र नदी का पूजन करते हैं.
इस पर्व की छटा उत्तर भारत में विशेष रूप से दिखती है. उत्तराखंड, बिहार में अलग ही रूप में इसकी शोभा दिखती है. यहां गंगा अवसर के दिन मेला भी लगाया जाता है. महर्षि वेद व्यास ने गंगा की महिमा के बारे में पद्मपुराण में लिखा है कि सभी स्त्री-पुरु षों के लिए गंगा ही ऐसा तीर्थ है, जिनके दर्शनभर से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं. इस दिन दान और पूजन का भी विशेष महत्व बताया गया है.

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