यदि दो व्यक्तियों में वास्तविक संबंध है यानी उनके बीच सहज संवाद है, तब उसके निहितार्थ बड़े व्यापक हो जाते हैं, फिर वहां अलगाव नहीं होता, वहां प्रेम होता है, जिम्मेवारी या दायित्व की बात नहीं होती. केवल वे ही लोग जो अपनी दीवारों के पीछे अलग-थलग होकर बैठे हैं, कर्त्तव्य और दायित्व की बात करते हैं.
एक व्यक्ति जो प्रेम करता है दायित्व की बात नहीं करता है, वह प्रेम करता है. अत: वह अपना आनंद, अपना दुख, अपना धन दूसरे के साथ बांटता है. क्या आपके परिवार ऐसे हैं? क्या अपनी पत्नी, अपने बच्चों के साथ आपका सीधा गहरा संबंध है? नहीं है. अत: परिवार अपने नाम को या परंपरा को चलाये रखने का, यौन संबंध के तौर पर या मानसिक रूप से जो भी आप चाहते हों, उसे पाने का बहाना भर है.
इस प्रकार परिवार अपने नाम या अपनी परंपरा को बनाये रखने का एक साधन हो जाता है. यह एक प्रकार का अमरत्व, एक प्रकार का स्थायित्व है. परिवार का प्रयोग परितुष्टि के साधन के रूप में भी किया जाता है. मैं व्यापार के संसार में, राजनीति या सामाजिक क्षेत्र में बड़ी निष्ठुरता से दूसरों का शोषण करता हूं और घर में दयालु एवं उदार होने की कोशिश करता हूं.
मैं संसार में दुख उठाता हूं और घर जाकर सांत्वना पाने की कोशिश करता हूं. अत: संबंध वहीं खोजा जाता है जहां परस्पर संतुष्टि की, एक दूसरे के काम आने की बात होती है, जब आप ऐसी संतुष्टि नहीं पाते, तो आप रिश्ता बदल लेते हैं, या तो आप संबंध-विच्छेद कर लेते हैं.
जे कृष्णमूर्ति