एक उपनिषद में ईश्वर का बहुत सुंदर वर्णन है. एक बार एक लड़का अपने पिता के पास गया और पूछा- ईश्वर क्या है? पिता ने उत्तर दिया, ‘भोजन ईश्वर है, क्योंकि भोजन से सबका पालन होता है.’ बालक कई महीनों तक इसके बारे में सोचा और वापस लौट कर फिर पूछा- ईश्वर क्या है?
पिता ने कहा, ‘प्राण ईश्वर है.’ लड़का गया, चिंतन किया, प्राण के बारे में सब कुछ समझा कि कैसे प्राण ऊर्जा शरीर के अंदर और बाहर आ-जा रही है. वह पुन: अपने पिता के पास लौटा और पूछा- ईश्वर क्या है? पिता ने बच्चे का तेजस्वी चेहरा देखा और कहा, ‘मन ब्रrा है, मन ईश्वर है.’
पहले की तरह लड़का चला गया और तब तक मनन किया, जब तक कि उसने अंतिम परमानंद को नहीं प्राप्त कर लिया. बच्चे ने अपने पिता से कभी शिकायत नहीं की. वह पिता के उत्तरों को समझ कर वापस आया और प्रश्न को पुन: पूछा- यह शिक्षा की प्राचीन विधि रही- एक कदम से अगले कदम पर ले जाने की. पहले भोजन, फिर प्राण, फिर मन, फिर अंतरात्मा, फिर परम ब्रrा-परमानंद. परमानंद ही देवत्व है.
तुम्हारा अस्तित्व आकाश की तरह सर्व व्यापक है. फिर पिता ने बच्चे से कहा, ‘तुममें, मुझमें और अनंत आत्मा में कोई अंतर नहीं है. हम सब एक हैं. स्वयं, गुरु और शाश्वत ऊर्जा अलग-अलग नहीं हैं. सभी एक ही तत्व से बने हैं. उपनिषदों में यह हजारों साल पहले कहा गया था, ‘ईश्वर स्वर्ग में कहीं बैठा हुआ कोई व्यक्ति नहीं है, अपितु वह हर जगह मौजूद है.
श्री श्री रविशंकर