एक बार अनाथपिंडक ने बुद्ध से पूछा, ‘भगवन, गृहस्थ के लिए कौन-सी बातें स्वागत योग्य, सुखद तथा स्वीकार्य हैं, परंतु जिन्हें प्राप्त करना कठिन है.’ बुद्ध ने कहा- प्रथम, विधिपूर्वक धन अर्जित करना है. दूसरी बात यह देखना है कि आपके संबंधी भी विधिपूर्वक ही धन-संपत्ति अर्जित करें.
तीसरी बात है, दीर्घजीवी बनो. गृहस्थ को इन चार चीजों की प्राप्ति करनी है, जो कि संसार में स्वागतयोग्य, सुखकारक तथा स्वीकार्य हैं, परंतु जिन्हें प्राप्त करना कठिन है, चार अवस्थाएं भी हैं, जो इनसे पूर्ववर्ती हैं.
वे हैं श्रद्धा, शुद्ध आचरण, स्वतंत्रता और बुद्धि. शुद्ध आचरण दूसरे का जीवन लेने अर्थात हत्या करने, चोरी करने, व्यभिचार करने, झूठ बोलने तथा मद्यपान करने से रोकता है. स्वतंत्रता ऐसे गृहस्थ का गुण है, जो धनलोलुपता के दोष से मुक्त उदार, दानशील, मुक्तहस्त, दान देकर आनंदित होनेवाला और इतना शुद्ध हृदय का हो कि उसे उपहारों का वितरण करने के लिए कहा जा सके. बुद्धिमान कौन है?
वह जो यह जानता है कि जिस गृहस्थ के मन में लालच, धन लोलुपता, द्वेष, आलस्य, उनींदापन, निद्रालुता, अन्यमनस्कता तथा संशय है और जो कार्य करना चाहिए, उसकी उपेक्षा करता है और ऐसा करनेवाला प्रसन्नता तथा सम्मान से वंचित रहता है. लालच, कृपणता, द्वेष, आलस्य तथा अन्यमनस्कता तथा संशय मन के कलंक हैं. जो गृहस्थ मन के कलंकों से छुटकारा पा लेता है, वह महान, प्रचुर बुद्धि व विवेक, स्पष्ट दृष्टि तथा पूर्ण बुद्धि व विवेक प्राप्त कर लेता है.
डॉ बीआर आंबेडकर