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सब दान एक समान नहीं

जो महापुरुष होते हैं, उनका एक लक्षण यह होता है कि वे परोपकार करनेवाले होते हैं, उनके बन में परोपकार की भावना होती है. गीताकार ने ज्ञान के रूप में परोपकार की बात कही और यह भी स्पष्ट कहा कि दान पात्र को भी दिया जा सकता है और दान अपात्र को भी दिया जा […]

जो महापुरुष होते हैं, उनका एक लक्षण यह होता है कि वे परोपकार करनेवाले होते हैं, उनके बन में परोपकार की भावना होती है. गीताकार ने ज्ञान के रूप में परोपकार की बात कही और यह भी स्पष्ट कहा कि दान पात्र को भी दिया जा सकता है और दान अपात्र को भी दिया जा सकता है.

यद्यपि अपात्र को दिये जानेवाले दान को अच्छा नहीं माना गया. पात्र को जो दान दिया जाता है, वह उत्तम दान होता है. जैन वा्मय के अनुसार पात्र का मतलब साधु है. साधु को जो दान दिया जाता है, वह उत्तम दान है. शेष लौकिक दान हैं. लौकिक दान का भी मूल्य होता है. कुछ लोग कृपण होते हैं.

उनके हाथ से मानो कुछ दिया ही नहीं गया है. जिस व्यक्ति के पास समृद्धि हो और उसके पास कोई गरीब व्यक्ति मांगने आ जाये, उसको मुंह से जवाब देना लौकिक संदर्भो में अच्छा नहीं माना जाता है. धन के प्रति मोह या आसक्ति है, वह पाप है. आसक्ति बंधन का कारण है और अनासक्ति को भी समझें और दान को इस रूप में समझें कि सब दान एक समान नहीं हैं, जैसे- गाय, भैंस, आक और सूअर- इन चारों का दूध होता है, परंतु सबका दूध एक समान नहीं होता है.

आचार्य भिक्षु ने कहा कि जिस प्रकार सब दूध दिखने में सफेद हैं, पर दूध-दूध में कितना अंतर है, उसी प्रकार अनुकंपा-अनुकंपा में भी अंतर है. अनुकंपा भी दो प्रकार की होती है. जो अनुकंपा आत्मा के संदर्भ में होती है, वह लोकोत्तर अनुकंपा है और जो अनुकंपा मात्र शरीर के संदर्भ में होती है, वह लौकिक अनुकंपा है.

आचार्य महाश्रमण

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