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वासंतिक नवरात्र छठा दिन: कात्यायनी दुर्गा का ध्यान
चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दुलवरवाहना । कात्यायनी शुभं दद्दाद देवी दानवघातिनी ।। जिनका हाथ उज्ज्वल चन्द्रहास(तलवार) से सुशोभित होता है तथा सिंहप्रवर जिनका वाहन है, वे दानवसंहारिणी दुर्गा देवी कात्यायनी मंगल प्रदान करें. जगत जननी महाशक्ति दुर्गा-6 ब्रह्म की महाशक्ति के रूप में श्रद्धा, प्रेम और निष्काम भाव से उपासना करने से परब्रह्म परमात्मा की प्राप्ति होती है. […]
चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दुलवरवाहना ।
कात्यायनी शुभं दद्दाद देवी दानवघातिनी ।।
जिनका हाथ उज्ज्वल चन्द्रहास(तलवार) से सुशोभित होता है तथा सिंहप्रवर जिनका वाहन है, वे दानवसंहारिणी दुर्गा देवी कात्यायनी मंगल प्रदान करें.
जगत जननी महाशक्ति दुर्गा-6
ब्रह्म की महाशक्ति के रूप में श्रद्धा, प्रेम और निष्काम भाव से उपासना करने से परब्रह्म परमात्मा की प्राप्ति होती है. बहुत से विद्वान इसे भगवान की ह्लादिनी शक्ति मानते हैं. महेश्वरी, जगदीश्वरी, परमेश्वरी भी इसी को कहते हैं. लक्ष्मी, सरस्वती, दुर्गा, राधा,सीता आदि सभी इस शक्ति के ही रूप हैं. माया, महामाया, मूल प्रकृति, विद्या,अविद्या आदि भी इसी के रूप हैं.
परमेश्वर शक्तिमान है और भगवती परमेश्वरी उसकी शक्ति है. शक्तिमान से शक्ति अलग होने पर भी अलग नहीं समझी जाती. जैसे अग्नि की दाहिका शक्ति अग्नि से भिन्न नहीं है. यह सारा संसार शक्ति और शक्तिमान से परिपूर्ण है और उसी से इसकी उत्पत्ति, स्थिति और प्रलय होते हैं.
इस महाशक्तिरूपा जगज्जननी दुर्गा की उपासना लोग नाना प्रकार से करते हैं. कोई तो इस महेश्वरी को ईश्वर से भिन्न समझते हैं और कोई अभिन्न मानते हैं. श्रुति, स्मृति, पुराण, इतिहासादि शास्त्रों में इस गुणमयी विद्या-अविद्यारूपा मायाशक्ति को प्रकृति, मूल-प्रकृति, महामाया, योगमाया आदि अनेक नामों से कहा है. उस मायाशक्ति की व्यक्त और अव्यक्त अर्थात साम्यावस्था तथा विकृतावस्था-दो अवस्थाएं हैं. उसे कार्य, कारण एवं व्याकृत , अव्याकृत भी कहते हैं. 23 तत्वों के विस्तारवाला यह सारा संसार तो उसका व्यक्त स्वरूप है, जिससे सारा संसार उत्पन्न होता है और जिसमें यह लीन हो जाता है, वह उसका अव्यक्त स्वरूप है.गीता में भगवान कृष्ण कहे हैं-
अव्यक्ताद्वव्यक्तय:सर्वा: प्रभवन्त्यहरागमे।
रात्र्यागमे प्रलीयन्ते तत्रैवाव्यक्तसंज्ञके।।
अर्थात-सम्पूर्ण दृश्यमात्र सम्पूर्ण प्राणी ब्रह्म के दिन के प्रवेशकाल में अर्थात विद्या (दैवी सम्पद्)के प्रवेश काल में संपूर्ण प्राणी अव्यक्त बुद्धि में जागृत हो जाते हैं और रात्रि के प्रवेशकाल में उसी अव्यक्त, अदृश्य बुद्धि में जागृति के सूक्ष्म तत्व अचेत हो जाते हैं. वे प्राणी अविद्या की रात्रि में स्वरूप को स्पष्ट देख नहीं पाते किंतु उनका अस्तित्व रहता है.
सातवां दिन
कालरात्रि दुर्गा का ध्यान
करालरूपा कालाब्जसमानाकृति विग्रहा।
कालरात्रि:शुभं दद्दाद् देवी चण्डाटटहासिनी।।
जिनका रूप विकराल है,जिनकी आकृति और विग्रह कृष्ण कमल सदृश है तथा जो भयानक अट्टहास करनेवाली हैं,वे कालरात्रि देवी दुर्गा मंगल प्रदान करें.
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