एकाग्रता समस्त ज्ञान का सार है. उसके बिना कुछ नहीं किया जा सकता. साधारण मनुष्य अपनी विचार-शक्ति का 90 प्रतिशत अंश व्यर्थ नष्ट कर देता है और इसलिए वह निरंतर भारी भूलें करता रहता है. प्रशिक्षित मनुष्य अथवा मन कभी कोई भूल नहीं करता.
जब मन एकाग्र होता है और पीछे मोड़ कर स्वयं पर ही केंद्रित कर दिया जाता है, तो हमारे भीतर जो भी है, वह हमारा स्वामी न रह कर हमारा दास बन जाता है. एकाग्रता मनुष्य के लिए बहुत ही जरूरी तत्व है, इसके माध्यम से ही वह अपनी आंतरिक शक्तियों को पहचान सकता है.
मनुष्य को इसका प्रयास करना चाहिए कि सांसारिक झंझावातों से मुक्ति के लिए एकाग्रता का सहारा ले. ज्ञान की प्राप्ति के लिए एकमात्र उपाय है- एकाग्रता. रसायनविद् अपनी प्रयोगशाला में जाकर अपने मन की समस्त शक्तियों को केंद्रीभूत करके जिन वस्तुओं का विश्लेषण करता है, उन पर प्रयोग करता है और इस प्रकार वह उनके रहस्यों को जान लेता है.
ज्योतिषी अपने मन की समग्र शक्तियों को एकत्रित करके दूरबीन के भीतर से आकाश में प्रक्षिप्त करता है और बस, त्यों ही सूर्य, चंद्र एवं तारे अपने-अपने रहस्य उसके निकट खोल देते हैं. मैं जिस विषय पर बातचीत कर रहा हूं, उस विषय में जितना मनोनिवेश कर सकूंगा, उतना ही इस विषय का गूढ़ तत्व तुम लोगों के निकट प्रकट कर सकूंगा. तुम लोग मेरी बात सुन रहे हो और तुम लोग जितना इस विषय में मनोनिवेश करोगे, उतनी ही मेरी बात की स्पष्ट रूप से धारणा भी कर सकोगे.
स्वामी विवेकानंद