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जब केवल एक व्यक्ति ध्यान करता है, तो उसे तपस्या कहते हैं. परंतु जब सारे विश्व के लोग एक साथ जुड़ कर ध्यान करते हैं, तो उसे यज्ञ कहते हैं. विश्व के सभी लोगों का एक साथ जुड़ना और भी विशेष होता है, क्योंकि हम एक सत्व और तालमेल का क्षेत्र बना लेते हैं, जिसकी […]

जब केवल एक व्यक्ति ध्यान करता है, तो उसे तपस्या कहते हैं. परंतु जब सारे विश्व के लोग एक साथ जुड़ कर ध्यान करते हैं, तो उसे यज्ञ कहते हैं. विश्व के सभी लोगों का एक साथ जुड़ना और भी विशेष होता है, क्योंकि हम एक सत्व और तालमेल का क्षेत्र बना लेते हैं, जिसकी आज विश्व में अत्यधिक आवश्यकता है.

तो एक नये आरंभ के लिए यह बहुत सुंदर है. हमें याद रखना चाहिए कि हम नवीन भी हैं और प्राचीन भी. सूर्य को देखिए, यह प्राचीन है. फिर भी वह आज कितना ताजा है! किरणों कितनी ताजा हैं, वायु ताजा है, पेड़ कितने ताजे हैं. पुराने पेड़ और ताजे पत्ते! ऐसे ही, आप भी नवीन और ताजे हैं. ऐसे ही आपको जीना चाहिए ‘मैं प्राचीन हूं और नवीन भी, शाश्वत और अनंत! स्वयं को ताजा और नया अनुभव कीजिए, और आप देखेंगे कैसे सारी समस्याएं और खेद कितनी सरलता से लुप्त हो जाते हैं. स्वीकृति भीतर से उदय होती है, उत्साह भीतर से उद्भव होता है और हर स्तर पर तालमेल बैठने लगता है.

अपने जीवन में आपको तीन चीजों की आवश्यकता है- करुणा, आवेश, और वैराग्य. जब आप व्यथित हैं, तब वैरागी रहिए. जब आप खुश हैं, तब आवेश रखिए. आपको जीवन में कोई धुन होनी चाहिए. और सेवा करने की धुन सबसे अद्भुत चीज है, जिसकी लालसा इस संसार के हर एक व्यक्ति को होनी चाहिए. तो, जब आप खुश हों, तो सेवा करने के लिए हमेशा तत्पर रहिए. जब दुखी हों, तब वैरागी रहिए, और सदैव करुणामयी रहिए.

श्री श्री रविशंकर

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