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राष्ट्रीय एकता के लिए चिंतन

सामाजिक और आर्थिक असमानता देश की राष्ट्रीय एकता में बहुत बड़ी बाधा है. इसका मूल है अहं और स्वार्थ. यही कारण है कि राष्ट्र की भावात्मक एकता के लिए अहं-विसर्जन और स्वार्थ-विसर्जन को मैं बहुत महत्व देता हूं. जातीय असमानता भी राष्ट्रीय एकता में बहुत बड़ी बाधा है. उसका भी मूल कारण अहं ही है. […]

सामाजिक और आर्थिक असमानता देश की राष्ट्रीय एकता में बहुत बड़ी बाधा है. इसका मूल है अहं और स्वार्थ. यही कारण है कि राष्ट्र की भावात्मक एकता के लिए अहं-विसर्जन और स्वार्थ-विसर्जन को मैं बहुत महत्व देता हूं. जातीय असमानता भी राष्ट्रीय एकता में बहुत बड़ी बाधा है.

उसका भी मूल कारण अहं ही है. दूसरों से अपने को बड़ा मानने में अहं पुष्ट होता है और आदमी अपने-आप में संतोष का अनुभव करता है. अहं का विसर्जन किये बिना जातीय भेद का अंत नहीं हो सकता. एक पेड़ की दो शाखाएं परस्पर विरोधी कैसे हो सकती हैं?

फिर भी यह कहा जाता है कि धर्म-संप्रदाय मनुष्यों में मैत्री स्थापित करने के लिए प्रचलित हुए हैं. उनमें जन्मना शत्रुता नहीं है, फिर मैत्री स्थापित करने की क्या आवश्यकता हुई? शत्रुता को मिटाने का काम धर्म-संप्रदाय ने प्रारंभ किया, किंतु आगे चल कर धर्म स्वयं निहित स्वार्थ वाले लोगों से घिर गये और मनुष्य को मनुष्य का शत्रु मानने के सिद्धांत की पुष्टि में लग गये.

इस चिंतन के आधार पर सांप्रदायिक समस्या का मूल भी अहं और स्वार्थ को छोड़ कर अन्यत्र नहीं खोजा जा सकता. इसलिए सांप्रदायिक वैमनस्य की समस्या को सुलझाने के लिए भी अहं और स्वार्थ का विसर्जन बहुत आवश्यक है. दूसरों तक विचारों को पहुंचानेवाली माध्यम भाषा को भी राष्ट्रीय एकता के सामने समस्या बना दिया जाता है. इसलिए राष्ट्रीय एकता के लिए इन विषयों पर गंभीर चिंतन करना बहुत ही आवश्यक है.

आचार्य तुलसी

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