कोई भी समस्या जब ज्वलंत होकर हमारे सामने आती है, तो उसके समाधान की खोज जरूरी हो जाती है. तनाव की समस्या भी जितनी प्रबल है, उसका समाधान उससे भी अधिक तीव्रता से सोचा जा रहा है. अध्यात्म की भूमिका पर तनाव का समाधान है मन को साधना, आत्मा को साधना.
मन को साधने की बात छोटी-सी है, सुनने में प्रिय भी है, पर किसी अभ्यास या प्रक्रिया के बिना मन सध नहीं सकता. मानसिक तनाव-विसर्जन की दृष्टि से तनाव पर की जानेवाली चर्चा की अपेक्षा, तनाव-विसर्जन की प्रक्रिया समझने का मूल्य अधिक है. क्योंकि जब तक सोपान ही न मिले, ऊपर कैसे चढ़ा जा सकता है. प्रक्रिया उपलब्ध होने के बाद तनाव का भार अपने आप आधा हो जाता है. इसलिए तनाव की समस्या को समाहित करने के लिए किसी निश्चित प्रक्रिया से गुजरना आवश्यक प्रतीत होता है. प्रक्रिया क्या हो सकती है? वह है- प्रेक्षाध्यान की पद्धति. ध्यानयोग की अपनी पूरी प्रक्रिया है.
इसके द्वारा भीतरी उपादानों और बाह्य निमित्ताें, दोनों से बचाव हो सकता है. यद्यपि बाह्य निमित्ताें को मिटाना किसी व्यक्ति के वश की बात नहीं है, पर उपादान को क्षीण किया जा सकता है. निमित्त भी काम तब करते हैं, जब भीतर उपादान प्रबल हो. इसलिए जिस व्यक्ति में मानसिक तनाव से मुक्त होने की चाह हो, उसे निमित्त की अपेक्षा उपादान पर ही अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिए. उपादान की तीव्रता को शांत करने के लिए ध्यान के अतिरिक्त कोई आलंबन हो भी नहीं सकता.
आचार्य तुलसी